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जब कोई गिनती बताता है, इतना धन छोड़ा, इसलिए बड़े त्यागी हैं, इसमें त्याग बड़ा सिद्ध नहीं होता, धन बड़ा सिद्ध होता है; क्योंकि धन मापदंड है, धन क्राइटेरिअन है। इस सबकी कथा कि महावीर ने कितना धन छोड़ा, दो कौड़ी की है। जब महावीर को कोई मूल्य नहीं है उस धन का, तो महावीर के जीवन को समझने में भी उस धन का कोई मूल्य नहीं रह जाता। जब महावीर को मूल्य नहीं है उस धन का, तो महावीर की जिंदगी में उसकी गणना क्यों की जाती है? कौन कर रहा है यह गणना? ये महावीर को समझने वाले लोग नहीं हैं।
महावीर कहते हैं, आत्मा का न जन्म होता, न मत्य होती, तो फिर महावीर के जीवन की कथा में जन्म और मृत्यु की बात बकवास है। क्योंकि महावीर कहते हैं जन्म भी गौण, मृत्यु भी गौण, आत्मा तो अमर है; जन्म और मृत्यु का कोई हिसाब रखने की जरूरत नहीं। जब महावीर यह कहते हैं तो महावीर की जीवन-चर्या की बात करने वाले लोग अगर महावीर के जन्म और मृत्यु की चर्चा करते हों, तो दुश्मन हैं महावीर के, अनुयायी नहीं हैं। समझे ही नहीं कि महावीर क्या कह रहे हैं, क्या उनका जीवन है!
तो किस जीवन की बात पूछना चाहते हैं आप? कुछ ऐसे ढंग से पूछी गई है बात कि उनके जीवन पर कहें, जैसे मैं कहीं किसी और चीज पर न कह दूं!
जीवन क्या है? जीवन कोई ऐसी चीज नहीं है कि आप घटनाओं में उसके आंकड़े बिठा लें; जीवन जो ऑबियस है, जो दिखाई पड़ता है, प्रकट, वह नहीं है। और महावीर का जीवन तो वह बिलकुल नहीं है। वह व्यक्ति उतना ही महान है, जिस व्यक्ति के भीतर ऐसा जीवन है, जो बाहर से दिखाई पड़ना मुश्किल है।
लेकिन हमारी आंखें तो केवल बाहर से देखती हैं। और इस बाहर से देखने के कारण हमने सारे महापुरुषों के साथ जो अनाचार किया है- पूजा के नाम पर, प्रार्थना के नाम पर, अनुयायी होने के नाम पर हमने महापुरुषों की जो विकृत स्थिति पैदा कर दी है, किसी दिन उसका हिसाब लगेगा तो हम परमात्मा की अदालत में कैसे अपराधी सिद्ध होंगे, इसका हिसाब लगाना बहुत मुश्किल है। हमारा क्या निर्णय होगा, कहना कठिन है।
हमारे देखने के ढंग, हमारी पहचानने की आंख इतनी बेमानी है कि हम जिन चीजों को आंकते और पहचानते हैं, उनका कोई मूल्य नहीं रह जाता। हम कुछ व्यर्थ को खोजने में इतने सफल हैं-जैसे, थोड़ा समझें तो हमें दिखाई पड़े कि बाहरी जीवन क्या है और अंतस-जीवन क्या है? और महावीर के अंतस-जीवन में थोड़ी झांकी मिल जाए, तो हमारे खुद के अंतसजीवन में भी झांकी मिलने के लिए कुछ रास्ता सिद्ध और साफ हो सकता है।
मुझे कोई प्रयोजन नहीं इस बात से कि महावीर की प्रशंसा में कुछ बातें कही जाएं कि न कही जाएं; महावीर की प्रशंसा में कहने से महावीर को तो जरा भी चिंता नहीं थी। जब वे जीवित थे, तब चिंता नहीं थी, अब तो चिंता का कोई कारण नहीं है। लेकिन उनके पीछे चलने वाले जो लोग हैं, उनको बड़ा आनंद आता है कि कोई महावीर स्वामी, भगवान महावीर, उनकी प्रशंसा में कुछ बातें कहे! क्यों, उनको क्यों मजा आता है ? ___महावीर को तो कोई मजा नहीं आता। महावीर तो प्रशंसा के भूखे नहीं हैं, आदर के भूखे नहीं हैं। महावीर को तो यश की कोई कामना नहीं है। महावीर को तो पता भी नहीं है कि कौन
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