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जाए। मैं तो यही कहूंगा, वह जिस धर्म में है, उस धर्म की संपूर्ण गहराई में उतर जाए। अगर वह क्रिश्चियन है तो वह अच्छा क्रिश्चियन हो जाए, अगर वह मुसलमान है तो अच्छा मुसलमान हो जाए। अच्छे मुसलमान में, अच्छे ईसाई में, और अच्छे जैन में कोई फासला नहीं रह जाता है। सब फासले बुरे लोगों में हैं। सारे फासले बुराई के बीच हैं, भलाई के बीच कोई फासला नहीं है।
और इसीलिए जो धर्म अलग-अलग खड़े दिखाई पड़ते हों, जो मंदिर और चर्च अलग खड़े दिखाई पड़ते हों, जानना कि वे बुरे लोगों ने खड़े किए होंगे। वे भले लोगों के खड़े किए हुए नहीं हो सकते। और जो संप्रदायों और संगठनों में विभक्त दिखाई पड़ते हों और जो आर्गनाइजेशंस में बंधे हुए दिखाई पड़ते हों, समझना कि उसमें बुरे लोग नेता होंगे। वह भले लोगों का काम नहीं हो सकता । साधु जगत में किसी को लड़ाते नहीं हैं और असाधु सिवाय लड़ाने के कुछ भी नहीं करते हैं।
यदि महावीर से आप संबंधित हो गए तो आप क्राइस्ट से और कृष्ण से भी संबंधित हो जाएंगे। क्योंकि ये नाम अलग हैं, इनके भीतर जो सचाई है, वह एक है । यहां बहुत, हजार दी जलते हों, वे हजार दीए अलग-अलग हैं, लेकिन उनमें जो ज्योति जलती है वह एक है । और लाख फूल यहां खिले हों, वे फूल सब अलग-अलग हैं, लेकिन जो सौंदर्य उनमें प्रकट होता है वह एक है। सारी जमीन पर जो भी श्रेष्ठ पुरुष हुए हैं, और जिनके जीवन में परमात्मा का प्रकाश उतरा है, और जिनके जीवन में सौंदर्य का अनुभव हुआ है, और जिन्होंने सत्य को उपलब्ध किया है, उनकी देहें अलग हों, उनकी आत्माएं अलग नहीं हैं।
इसलिए महावीर के इस जन्म - दिवस पर पहली बात आपसे यह कहूं कि आप सिर्फ इस कारण महावीर के प्रति अपने को श्रद्धा से भरे हुए मत समझ लेना कि आपका जन्म जैन घर में हुआ है।
धर्म बपौती नहीं है और किसी को वंशक्रम से नहीं मिलता।
धर्म प्रत्येक व्यक्ति की निजी उपलब्धि है और अपनी साधना से मिलता है।
इस समय सारी जमीन जिस भूल में पड़ी है, वह भूल यह है कि हम उस धर्म को, जिसे कि चेष्टा से, साधना से, प्रयास से उपलब्ध करना होगा, उसे हम पैदाइश से उपलब्ध मान लेते हैं! इससे बड़ा धोखा नहीं हो सकता। और जो आपको यह धोखा देता है, वह आपका दुश्मन है। जो आपको इसलिए जैन कहता हो कि आप जैन घर में पैदा हुए, वह आपका दुश्मन है, क्योंकि वह आपको ठीक अर्थों में जैन होने से रोक रहा है। इसके पहले कि आप ठीक अर्थों में जैन हो सकें, आप गलत अर्थों में जो जैन हैं, उसे छोड़ देना होगा। इसके पहले कि कोई सत्य को पा सके, जो असत्य उसके मन में बैठा हुआ है, उसे अलग कर देना होगा।
तो यह तो मैं आपके संबंध में कहूं कि आप अपने संबंध में यह निश्चित समझ लें ि अगर आपका प्रेम और श्रद्धा केवल इसलिए है, तो वह श्रद्धा झूठी है। और झूठी श्रद्धा मनुष्य को कहीं भी नहीं ले जाती । झूठी श्रद्धा भटकाती है, पहुंचाती नहीं है। झूठी श्रद्धा चलाती है, लेकिन किसी मंजिल को निकट नहीं लाने देती है। झूठी श्रद्धा अनंत चक्कर है। और सच्ची श्रद्धा एक ही छलांग में कहीं पहुंचा देती है।
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