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कहा कि यह सुई, अभी जिंदा हूं, वापस ले लें; मरने पर लौटाना मेरी सामर्थ्य में नहीं है। मैंने बहुत चेष्टा की, बहुत उपाय किए, बहुत सोचा-अपनी सारी संपत्ति भी लगा दूं, तो जिस मुट्ठी में यह सुई होगी, वह इसी पार रह जाएगी। मैं पता नहीं किस लोक में, किस अज्ञात में विलीन हो जाऊंगा। यहां तो मैं रहूंगा नहीं। मैं इस सुई को पार नहीं ले जा सकता हूं।
नानक ने कहा, फिर मैं तुझसे एक बात पूछू ? तेरे पास क्या है जिसे तू पार ले जा सकता है? उस व्यक्ति ने कहा, मैंने तो कभी विचारा नहीं। लेकिन अब देखता हूं तो दिखाई नहीं पड़ता कि मेरे पास कुछ है, जिसे मैं पार ले जा सकता हूं। नानक ने कहा, जो मृत्यु के पार न जा सके, वह संपत्ति नहीं है।
जो मृत्यु के इस पार रह जाए, वह विपत्ति हो सकती है, संपत्ति नहीं हो सकती।
समस्त धार्मिक जाग्रत पुरुष भी संपत्ति को कमाए हैं। हम भी संपत्ति को कमाते हैं। हम उस संपत्ति को कमाते हैं, जो मृत्यु के इस पार होगी। वे उस संपत्ति को कमाते हैं, जिसे मृत्यु की लपटें भी नष्ट न कर सकेंगी, जो मृत्यु की लपटों के पार भी निकल जाएगी। शायद वे ही स्वार्थी हैं, शायद वे ही परम स्वार्थ को पूरा कर लेते हैं। और शायद न मालूम कौन है कि जो उनको कहता है कि वे त्यागी हैं, न मालूम कौन है जो कहता है उन्होंने सब छोड़ा, न मालूम कौन है जो कहता है उन्होंने समृद्धि छोड़ी, न मालूम कौन है जो उनके त्याग और तपश्चर्या की बात करता है! मुझे वैसी कोई बात दिखाई नहीं पड़ती। समृद्धि हम छोड़े हुए हैं, संपत्ति हम छोड़े हुए हैं, आनंद हम छोड़े हुए हैं। उन्होंने केवल दुख छोड़ा है, उन्होंने केवल अज्ञान छोड़ा है, उन्होंने केवल पीड़ा छोड़ी है। और अगर पीड़ा को और दुख को और अज्ञान को छोड़ना त्याग है तो फिर बात अलग है। फिर भोग क्या होगा?
इस जगत में केवल संन्यासी ही भोगी है। इस जगत में केवल विरक्त ही, वीतराग ही आनंद को, शांति को उपलब्ध रहता है। हम सब त्यागी हो सकते हैं।
महावीर ने अपनी समृद्धि को, राज्य को, व्यवस्था को छोड़ दिया, लात मार दी। हम प्रसन्नता से भरे हैं कि उन्होंने बहुत बड़ा काम किया! असल में हम संपत्ति को बहुत आदर देते हैं, इसलिए महावीर के त्याग को भी बहुत आदर देते हैं। हमारी दृष्टि में महावीर का मूल्य नहीं है, महावीर ने वह जो संपत्ति को लात मारी, उसका मूल्य है! अगर किसी व्यक्ति को कचरा बहुत प्रिय हो और किसी को घर के बाहर कचरे को फेंकता देखे, तो शायद आदर से नमस्कार करे कि अदभुत त्याग कर रहा है, सुबह-सुबह सारा घर का कचरा फेंक रहा है!
हम जब यह कहते हैं कि महावीर बहुत बड़े त्यागी हैं, असल में हम संपत्ति के प्रति अपने आदर को सूचित करते हैं, महावीर के प्रति नहीं। अगर हम महावीर को समझेंगे तो हमें दिखाई पड़ेगा, महावीर ने वह छोड़ दिया जो व्यर्थ था। छोड़ना भी कहना शायद गलत है, क्योंकि व्यर्थ को छोड़ा नहीं जाता, व्यर्थ दिख जाए तो छूट जाता है। मैं पुनः दोहराऊं, छोड़ना भी कहना शायद गलत है। व्यर्थ को छोड़ा नहीं जाता, उसकी व्यर्थता दिख जाए तो छूट जाता है।
इस जगत में अज्ञानियों ने त्याग किया होगा, ज्ञानियों ने त्याग नहीं किया है। उनसे चीजें छूट गई हैं, जैसे पके पत्ते वृक्ष से गिर जाते हैं, वैसे ही जैसे हम कचरे को बाहर फेंक आते हैं और पुनः उसकी याद नहीं करते।
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