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महावीर परिचय और वाणी
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तो मेरा कहना है कि बिना अनुभव के काई मुक्ति नही । पाप के अनुभव के बिना पाप से भी मुक्ति नही । इसलिए भयभीत होकर जो पाप स रुषा है, वह पाप सभी मुक्त नहीं होता । वह पाप करने की सिफ शक्ति अर्जित करता है । आज नही, कल वह पाप करेगा ही और पाप करके पछताएगा । स्वय पछताकर फिर दमन करने लगेगा और तत्पश्चात दमन के फलस्वरूप - फिर पाप करेगा और फिर पठताएगा। यह एक बुरा चक्र है - पाप पश्चाताप, फिर पाप और पश्चात्ताप 1 मैं कहता हू कि पश्चाताप मुल्वर भी मत करना। मैं कहता हू जानवर पाप करना पूर जागे हुए पाप करना । जो भी करना पूरे जागे हुए करना । गाली भी देना तो पूरा जागे हुए दना । शायद गाली देने का मौका दुबारा न आवे और पश्चात्ताप को मी जरूरत न पड़े । मेरा मतलब केवल इतना है कि हमारा कोई भी अनुभव जितना जागरूक हो सके उतना अच्छा है । दमन का सवाल नहीं है ।" मेरी धारणा रही है कि अनतिक व्यक्ति को जितना बुरा कहा गया है, वह उतना बुरा नही होता । नैतिक 'यक्ति को जो भला कहा जाता है वह बहना मा गलत है । मेरी समझ में जीवन की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि व्यक्ति को सरल और सहज होने का मौका मिले- न उसकी निन्दा हो, न उसका दमन हो और न उसको जबरदस्ती ढालने-वदलने को - चेष्टा हो । समाज उसे समझने वा विमान और यवस्था दे गिक्षा उसे समझन का मौका दे । कोइ उससे न वह बाघ मत करो, क्रोध बुरा है । स्कूलो मे उस सिसाया जाय क्रोध करो लेकिन जागे हुए जानते हुए । अगर ऐसी पवस्था हो ता
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१ रजनीश की मान्यता है विज्ञानी गास्त्र नहीं रचते । इसीलिए गानो का यह कथन कि साधु दमन करता है, ज्ञान से उदभूत नहीं है । साधुधम के सम्बध मे एक सूत्र है
समण सजय दत्त, हणेज्जा को वि कत्यह । नत्यि जीवस्स नासोति, एव पेहेज्ज सजए ॥
(उत्त० अ०२, गा० २७ )
इसमे साधु को इंद्रिया का दमन करने वाला तथा सयमी कहा गया है । एक अय सूत्र में कहा गया है कि साधु क्म आने के सभी अगस्त द्वारों को सब ओर से बदवर हो जाता है और अध्यात्म तथा ध्यान-योग से आत्मा का प्रगस्त दमन एव अनु गासन करनेवाला होता है
अप्पसत्यह
अज्झप्पज्माण
दारेहि, सत्यओ
पिहियासयो ।
जागेहि, पसत्यदमसासणी ॥
(उत्त० म०१९, गा० ९४ )