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महावीर : परिचय और वाणी
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कारण इतना हो सकता है कि आदमी तो चोर है, लेकिन चोरी करने का साहन नहीं जुटा पाता । जिन्हें हम नैतिक कहते है, अक्सर वे जाहतहीन लोग होते है। और, याद रहे, धर्म साहम की यात्रा है। माहमहीन लोग इसलिए नैतिक होते हैं कि उनमे साहस नहीं है।
तो मेरी दृष्टि यह है कि पापी की सम्भावनाएं धर्म के निकट पहुंचने की ज्यादा हैं उस व्यक्ति की अपेक्षा जिमे हम नतिक व्यक्ति कहते है। जिस दिन पापी धर्म की दुनिया में पहुंचता है वह उननी ही तीव्रता से पहुँचता है जितनी तीव्रता से वह पाप की दुनिया मे गया था। नीत्मे ने लिखा है-'जब मैंने वृक्षो को आकाग छूते देखा तो मैंने खोजबीन की। मुझे पता चला कि जिस वृक्ष को आकाश छुना हो उसकी जड़ो को पाताल छूना पडता है । तब मुझे खयाल आया कि जिस व्यक्ति को पुष्प की ऊंचाइयां छुनी हो उस व्यक्ति के भीतर पाप की गहराइयो को छूने की क्षमता चाहिए।' ___मैं चाहता हूँ कि आदमी सीवा हो, चाहे वह पापी ही क्यों न हो । इसलिए मेरी भविष्यवाणी है कि आनेवाले सी वर्षों में पश्चिम में धर्म का उदय होगा और पूरब मे वर्म प्रतिदिन क्षीण होता चला जायगा। इसका कारण यह है कि पूरव.. पाखडी है, पश्चिम बुरा है मगर साफ है । यह साफ बुरा होना पीड़ा देनेवाला है। इसलिए उस पीड़ा से पश्चिम को बाहर निकलना ही पडेगा। पासडी का झुठा अच्छा होना पीडा नही बनता। वह कुनकुनी हालत में होता है-कभी भाप नही वनता, वर्फ भी नहीं बनता। पापी बादमी वर्फ भी बन सकता है, भाप भी वन सकता है। मेरा मानना है कि समाज ने नैतिक गिक्षा देकर अपने को किसी प्रकार सुव्यवस्थित तो कर लिया है मगर व्यक्ति की आत्मा को भारी नुकसान पहुंचाया है। और मेरा यह भी मानना है कि समाज व्यवस्थित है, यह सिर्फ दिखाई पडता है। अगर व्यक्ति झठे है तो व्यवस्था सच्ची कैसे हो सकती है ?
अक्सर धार्मिक व्यक्ति को असामाजिक होना पड़ा है, क्योकि वह इस झूठे समाज से राजी नहीं हो सकता। इसलिए वुद्ध अपने भिक्षुओ को जो नाम देते है वह है 'अनागरिक' । असल मे भिक्षु, साधु, सन्यासी का मतलव ही यह है कि वह किसी अर्थ मे असामाजिक हो गया है। समाज का अब तक का इतिहास झूठी नैतिकता, झूठी व्यवस्था और अराजकता के बीच डोलता रहा है।। __ मैं यह भी कहता हूँ कि काम-वासना उतनी खतरनाक नहीं है जितना खतरनाक पाखड है। पाखड मनुष्य की ईजाद है और काम-वासना परमात्मा की।
कहने की आवश्यकता नहीं कि सत्य से ही सत्य तक पहुँचा जा सकता है । यदि काम-वासना सत्य है तो उससे भी ब्रह्मचर्य तक पहुंचा जा सकता है। सत्य कामवासना की समझ से ही उत्पन्न अन्तिम अनुभूति है। काम-वासना व्यक्ति के जीवन का सत्य है। इस सत्य को समझने से हम और बड़े सत्य को उपलब्ध हो सकते है