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महावीर परिचय और वाणी सवार तप और सयम का नहीं है। सवाल है चेतना + रूपातरण का चेतना के बदर जान का । और चेतना के दा ही रूप हैं मच्छित भार अमूछित, जसे कम के दो रूप है सयम और जमयम । अगर कम म यदाहट की गई तो असयम की जगह सयम आ सकता है, मगर चेतना इससे अमूच्छित दशा म नहीं पहुंच पायगी । मूच्छित व्यक्ति सोया हुआ होता है, प्रमाद म हाता है। __ अब प्रश्न है कि मूच्छिन यक्ति प्रमाद से अप्रमाद में से पहुँचे ? महावीर की पिछले जन्मो को साधना अप्रमाद की सारना है। हमारे भीतर जो जीवन चेतना है वह परिपूर्ण रूप से कमे जाग्रत हो? इस विषय म महावीर कहते है 'हम विवेक से उठे, विवेक से बैठे, विवेक से चलें, विवेक से भोजन करें, विवेक से सोएँ।" अर्थात, उठते-वठन, सोते-जागते खात-पीते, प्रत्यक स्थिति म चेतना जाग्रत रहे, मूच्छित नही । जीवन यन की भाति न फटे हमारे काय यवत न हो । हम चलें तां चलन को क्रिया के प्रति सचेत रहें, भाजन करें तो भोजन करने की क्रिया का हम सयाल रहे। नौद म ही हम बहुत मार काय करते रखे जाते हैं। वह व्यक्ति जो रास्ते में हाथ हिला हिलाकर बातें करता रहता है यद्यपि उसके साथ कोई नहीं हाता, निद्रा म ही चरता रहता है । ऐसे लोग भी नीद म होत हैं जिनके हाठ हिलत रहते हैं और बातें होती रहती हैं यद्यपि व अकेले होते हैं । ऐसे लोग जाग्रत होकर भी विसी सूरम निद्रा म ही जीवन बिताया करत है। महावीर ने ऐसी निद्रा को प्रमाद कहा है । जागे हुए लोगा के भीतर एक धीमी-सी त द्रा का जाल फला होता है। किसी स धक्का साते ही वे भाव से भर जात है। वे जान उझकर कोष नही करत, फिर भी काध हो जाता है----वसे ही जस काइ विजली का बटन दवाए ता पखा चल पडता है। हम नही कहते वि पखा चल रहा है, पसा सिफ चलाया गया है । हम यह भी नही यह सकत कि उन्होन नोध किया है। हम इतना ही कह सकते हैं कि किसी ने बटन दबाया और उनका कोष चल पडा । आप भी यह नहीं कह सकते कि मैं भोप कर रहा हूँ, क्याकि जो आदमी यह कह सकता है कि मैं काम कर रहा हूँ उस आदमी के लिए कोष करना कभी सम्भव ही नहीं।
हम सब नीद म ही जागत और जीत हैं नीद म ही उठने वठते चरते फिरते हैं । हमारी इसी अवस्या को महावीर ने प्रमाद की सजा दी है। यही है मू. को अवस्था। इस मूर्छा से जागरण क्स हो? महावीर की पूरी साधना ही इतनी है कि सोना नहा है जागना है। जागन वी प्रनिया क्या होगी? जागन की प्रक्रिया होगा जागन या ही प्रयास । तैरना सीखने की एक ही तरखीव है कि तरा । तैरना शुस्ट वरना ही होगा, हाथ-पाव चलाने ही हागे, डूबने उतरन के लिए तैयार होना ही पडेगा । यदि तुम पानी में उतरने को राजी न हुए तो तरना वसे सिखाया जा सकता है । जल म उतरवर तरन का अभ्यास करना ही हागा।