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________________ निवेदन प्रस्तुत ग्रथ भगवान श्री रजनी की नव्यतम वृति है। इसम महावीर वाणी के Tए-नए अर्थो वापाडित्यमडित विश्लेपण हुआ है और पुरातनपथी टीयावारापी तद्विपयन भात धारणाएं ध्वस्त कर दी गई हैं। इसम पूर्ववर्ती टीयाना की भाव-क्षीणता की जगह मत्रपूत व्याया बोर न यता एव मौरिक्ता या चमत्कार है। भगवान् श्री रजनी की व्यायाशेली जितनी ही मर एव अप्रतिम है, उतनी ही उदात्त एव हृदयहारिणी भी । इसम यत्रतत्र उपविद्ध वाधक्याएँ विषय का अत्यधिक . गप्ट और रोचर बनाने मे समय हुई हैं। भगवान्थी सवथा विशुद्ध और समस्त प्रयाशयुक्त पदार्थों में भी प्रकाराय हैं"तच्छुम्र ज्योतिपा ज्योतिस्तधदात्मविदा विदु ।" विश्वेतिहास में पहली बार उनपे द्वारा महावीरवाणी को यह अथ-गौरव मिला है जो स्वय भगवान् श्री महावीर वा अथ था। अपने योगबल से तथा जम-जमातर की तपस्या साधना के पुण्यप्रताप से भगवान श्री रजनीश ने महावीर के स्वरूप म पर उनके मात या को प्रस्ट पिया है और महावीरमय होवर महावीर की “याख्या प्रस्तुत की है। अत मे इतना ही कहना अलम् होगा वि इस पृति में दो आयाम हैं-जहां एक ओर तो यह भगवान श्री महावीर वा परिचय देती है, ऐसा परिचय जा सूक्ष्मता, रोपवता और यदुप्य रे त्रिविध तत्त्वा मे उपत है वहीं दूसरी आर यह भगवान श्री रजनीचे रजनीशत्व पर भी प्रचुर प्रकाश डारती है और उनक दिव्य व्यक्तित्व को शादापी परि सीमित रेसाआ म मूत करने का असफल प्रयास करती है। आप इस व्याम्या पी रसात्मिकता पर मुग्य हो उटगे, रसाभिभूत हो जाएंगे। मुझे विश्वास है कि यह प्रति रजनीश-साहित्य की सक्थेष्ठ रचनाआ म पावतेय होगी और शास्त्रीय गुद्धिवालायोपयोर देगी। ये बातें पास्ना मे हा या शहा, स्वय मसोजनेवाले इचवश्य पारेंगे और स्वय से वन पोई गास्त्र है और कोई दूसरी जाप्तता।" में स्वामी चैत य वेतात (राजेश रजा) या अनुगहीत है रिहाने रम अथ ये सम्पादन म मरी यथाशक्य सहायता की है। स्वामी आन द वीतराग
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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