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महावीर परिचय और वाणी नहा रहती। अनगन परोवाले लोग दिन भर, मन ही मन साते रहत है उनके मन म भाजन चरता रहता है। अगर महावार ने चार चार महीने के उपवास किए हैं तो यह इस बात का सबूत है कि उनके पास भारी बलिष्ठ शरीर था, साधारण नहीं। तभी तो ऐसे उपवाम पे बाद भी उनका शरीर बचा रहा । उपवाम का मतलब है कि आत्मा और चेतना एक्दम भीतर चली जाय और उपवास रनवाले सावक का बाहर का खयाल ही न रहे । जब आप भीवर चले जाते हैं तो बाहर का स्मरण ही छट जाता है। शरीर इतना अदभुत यत्र है कि जब आप भीतर रहते हैं आपका शरीर सावधान हो जाता है अपनी व्यवस्था आप ही पूरी कर लेता है। मापका काई चिता करने की जरुरत नही । शरीर की साधना का मतलब है कि जर आप भीतर चले जायें तो आपके शरीर को आपकी कोई जरूरत न रह वह अपनी व्यवस्था आप पर ले । कायाक्रेग का अथ है काया की ऐसी साधना कि वह वाघा न रह जाय, प्रत्युत साधन हो जाय, सीटी बन जाय । रेरिन 'कायारलेग शद सतरनाक है इसलिए ऐसी साधना को 'कायापले मत पहा, इसे कायामाधना कहा । फ्लेग द अनुपयुक्त है , उसमे ऐसा मासित हाता है कि तुम शरीर का सता रहे हो । उपवास को न नाना मत कहो, अनशन मत कहो-उपवास को कहो आत्मा के निकट होना । अनान करने से उपवास नहीं होता, उपवास करने से अनशन हो जाता है। यह बात पयाल म आ जाय ता महावीर की धारा के खा जान का कोई कारण नहीं रहगा । यह भी ध्यान रहे पि महावीर जसा जादमी दुबारा नहीं होता। वस आदमी को पदा होन के रिए जो पूरी हवा और वातावरण चाहिए वह दुवारा असम्भव ह । जोरोस्टर वनफ्युगियस, मिलरेपा-जैस लोग नहीं खोने चाहिए । अलग अलग कोणा मे पहुँच कर उहाने ऐसी ची। पाई है जो वचनी ही चाहिए। वे ही मनुष्य-जाति की असली सम्पत्ति हैं । लेकिन जो उनके रक्षक मालम पडते हैं वही उनको ग्वोए दे रहे है।
महावीर के जम से रेकर उनकी साधना-बार के गुरू हाने तक काई स्पष्ट घटना का उल्ख उपर व नही है । जीजस की जीवनी म भी पहरे तीस वर्षों के जीवन का कोई तय्यपूण उल्लेख नहीं है। इसके पीछे वडा महत्त्वपूर्ण कारण है। महावीर जसी आत्माए अपने पिछले जम म ही अपनी यात्रा पूरी कर चुकी होती हैं, उनरे लिए घटनामा का जगत समाप्त हो चुका होता है । स्वय की किसी वासना १ कारण वे इस ज म म नहीं आते । इस जम म आन की प्रेरणा म सिफ उनकी परुणा ही कारण होती है। जो उहाने जाना है जो उहान पाया है उम वाटने के अतिरिक्त इस जाम म उनवा और काई काम नहीं होता । ठोन स समयें तो तीथकर