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महावीर परिचय और वाणी वाम नहीं हो पाता और केद्र की गति भी नष्ट होती है । गुजिएफ रहता था कि प्रयक पेद्र को उसबै वाम पर सीमित कर दो । महावीर के वत्ति सक्षेप का यही अथ है। प्रत्येक वृत्ति को उसके वे द्र पर मक्षिप्त पर तो उस कही और अय के द्वा के आसपास मत भटकन दो। इससे व्यक्ति म एक मुघडना और स्पष्टता आती है
और वह कुछ भी करने म समथ हो जाता है। उसकी प्रत्यर वत्ति टोटल इटेंसिटी म जीने रगती है। इसलिए वह व्यय हो जाती है। याद रहे कि जिस वृत्ति का भी आप उसकी समग्रता में जीते हैं वह व्यय हो जाती है। और आत्मदशन के पूर्व वतिया का व्यय हो जाना जरूरी है । इस सम्बध म यह भी स्मरणीय है कि साधारणत हमारी सारी वत्तिया बुद्धि या मन को घेर रहती हैं, क्याकि हम मन से ही सारा काम करते हैं। भोजन मा मन से करना पड़ता है, सभोग भी मन से करना पड़ता है क्पड़े भी मन से पहनने पुरते है। इसी कारण बेचारी बुद्धि निवर और निवीय हो जाती है, दुनिया म बुद्धिहीनता फलनी है।
वत्ति-मक्षेप पर महावीर ने दो कारणा स बल दिया है। एक ता जो वत्ति अपन केंद्र पर सगहीत या एकाग्र हो जाती है आपको उस वत्ति के वास्तविक अनुभव मिलन गुरू हो जात हैं। दूसरा यह कि वास्तविक अनुभव से मुक्त हो जाना बहुत आमान है क्योकि वास्तविक अनुभव बहुत दुसद है । रत्री की कल्पना से मुक्त हाना बहुत याठिा है स्त्री से मुक्त हा जाना बहुत आसान । धन की कल्पना से मुक्त हो जाना बहुत कठिन है, धन र ढेर से मुक्त हो जाना बहुत सरल। कल्पना से मुक्त होना है क्याषि कपना पहा टहरन नहीं देती, वह बहती वहाती चली जाती है। कही अत ही नहीं आता। वुद्धि का निजी काम है ध्यान । जब पुद्धि अपन मन में ठहरती है, अपो मे रुकती है तव बदिमत्ता आती है। लेकिन हमने इस सब तरह से बोझिल पर रखा है। वह अपना काम कय कर ? इसीलिए हम बुद्धिमता का पाइ पाम जीरन म नहा कर पाते। इमसे केवल साधन का ही पामते रहे हैं-चमी पन पमान या काम कभी शादी करन वा काम कमी रेडियो सुनने वा पाम । लेगिन बुद्धि की धुद्धिमत्ता पनपने नहा देते। इसरिए महावीर ने कहा है कि प्रत्येय वत्ति का उसने अपन पत्र पर सक्षिप्न वरी। उसे परन मतदा। भूख लगे ता पट से लगन दो बद्धि से यहा । बुद्धि को यह दो पितू चुप रह इमपी फिर छाड दे कि कितना बना है पेट पर देगा नि मूब ली है सब हम मुन लेंगे। इसी प्रकार नीद व यत्र यो अपना काम परोदा पाम-वामना के यत्र का अपना काम परो दो । तब तुम्हें धन यी दा छोड़नी नहा पदेगी। तुम अचानन पाआगे पि जो जो ध्यय था वहट गया । तुम्हें बा मपान बनान या पागापन छोडना ही पडेगा, तुम्हें दिर जायगा मि पितना वा मपान तुम्हारे लिए जरूरी है।
सा अध यह रहा कि अगर आप सब छाडपर नाग जाएं तो आप बदर