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महावीर परिचय और वाणी दसा है--पही रया, मुहम्मद का विदा पर दिया, मस्जिद माली रह गई। कुछ लोगा न मदिर और मस्जिद को भी विदा करके दम लिया तीथ भी त्याग नि। सच पूछा तो जग-जस मनुप्यता विसमित हागी, बसे वस व्यक्ति या जाग्रह छाहना ही होगा मूर्तियां त्यागनी ही पदेंगी। जना ने पुछ प्रतीर बचा रखे हैं। उनन चौगीस तायर हैं । जच्छा ता यह होता कि य प्रतीर भी न रहत किन्तु ऐमा न हो मका । योडे से चिह्न बन रह, किन्तु उनग मी भेट हो गया। पारम का मदिर अलग बना महावीर का जलग। उनन चिह म मी भेट ला दिया। चिह्ना का भी विदा करन की जरूरत है। लकिन यह तमी मम्मव है जर मनुप्प का मन - उसर पहले नहीं।
यह ठोर है कि जो अनुभव महावीर पा हुआ वही बुद्ध को भी लेकिन उस अनुभव का कहा गया अरग-अलग गु म । महावीर परत है आत्मा को पाना परम पान है । वुद्ध वही, उमी ममय जार उमी क्षेत्र म, कहत है आमा पा मानन रा वहा अमान नहीं है। दाना ठाम पहन हैं और दाना जानते हैं भगेमाति कि जाम पाइ भेद नहा। फिर भी दाना राजी नहा हो मान हम पर पारणा य वारण । राजी ए ता हमारे लिए व्यथ हैं। जिनने बड़े प्याप वग या बुद्ध न प्रमाविन दिया उनन बडे यापप धग या महावीर प्रमापित न कर पर । इमपा मारण यह है कि महापौर प्रती अनीन थे और पद के प्रतीन भरिप्य य । मावीर पाम जा प्रतोद थे, उन पोछे इस तीयारा या धारा थी। प्रनीर मिट चुप थे, प्रचलित हा र परिति । शरिर महायार का बटन पातिवारी व्यक्तित्व मा प्रातिारी मारम हुमा कारण उना प्रती जिनका उहान प्रयोग पिया, अतीत से आए थ। बुद्ध पारित व उना पानिधारी न या जितना महावीर मा, फितु य ज्यापानिमारी मारमहर। उहान ना नापा गुना पर नपिप्य पी पी। इति उनमा प्रमाय उरानर बदमाहा रहा, पापर और गहरा हाना रग, और मान है शासक और गहरा हाता रगा। आगर मा पो म पर प्रभार निरन्तर या जापानपि पवामा प्रा मरना है।चिन पर यह प्रमार' हायो हाना जा रहा है।
महा जा मुग पिमहावार ने मामा को यामाहै रितु युर नामा पाइनर पर दिरा युसन महा आमा नहा है। महापौर रासार पिया परमामा, मा-परमामा हाँ है मैंही। बुरन परमामा की यात हा ही साधारर यारदा नहीं माना ! म तrraौ मकाना नरार पर यिा और परामि
पारना जाता है, गरा निस IT है। प्रना गा पारेर यहार रही है ही पारित अनुमय पर हामिपति हासा रयास है। मुरादा मी हि पाता