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________________ २५० महावीर : परिचय और वाणी (५) महावीर-जैसे लोग प्रमाण नही देते, सिर्फ वक्तव्य देते है। उनके वक्तव्य वैसे ही वक्तव्य हैं जैसे आइस्टीन के या किसी और वैज्ञानिक के। अगर हम आइस्टीन से पूछते कि पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से मिलकर क्यो वना है, तो वह कहता कि क्यो का सवाल नही है, हम इतना ही कह सकते है कि वह बना है, ऐसा हुआ है। विज्ञान दूसरे के, अर्थात् पर के, सम्बन्ध मे वक्तव्य देता है, धर्म स्वय के सम्बन्ध मे। क्या आपको पता है कि जब भी आपके जीवन मे कोई दुख आता है तो दूसरे के द्वारा ही आता है ? चिन्ता भीतर से नही, बाहर से आती मालूम पडती है। क्या कभी आप भीतर से चिन्तित हुए है ? आपकी चिन्ता का केन्द्र सदा वाहर रहा है । वह धन हो, वीमार मित्र हो, टूटती हुई दुकान हो, हारा हुआ चुनाव हो, कुछ भी हो वह सदा दूसरा ही होता है । (६) कभी-कभी ऐसा लगता है कि दूसरा सुख का भी कारण बनता है। इस भ्रान्ति का टूट जाना जरूरी है। इसी से सव उपद्रव शुरू होते है । ऐसा तो लगता ही है कि दूसरा दुख का कारण है, लेकिन ऐसा भी लगता है कि दूसरो से सुख मिल सकता है। सुख भी दूसरो से आते मालूम पडते है। ध्यान रखे कि दूसरो से दुख मिलने का कारण यही है कि हम दूसरो से सुख की आशा करते है। दूसरी से दुख आता ही इसलिए है कि हमने उनसे एक भ्रान्ति का सम्बन्ध बना रखा है और समझ रखा है कि उनसे सुख आ सकता है। सुख का आना सदा भविष्य मे होता है। क्या कभी आपने जाना कि दूसरे से सुख आ रहा है ? सदा ऐसा लगता है कि आएगा, आता कभी नही। जिस मकान के लिए लालसा थी और कभी लगता था कि उसके मिल जाने से सुख मिलेगा, उसके मिलते ही सुख गायव हो जाता है। जब तक वह नहीं मिलता तब तक सुख की सम्भावना रहती है । यही बात अन्य चीजो पर भी लागू होती है। जिस दिन आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जायेंगी उस दिन पृथ्वी कितनी दुखी हो जायगी | इसलिए जिस मुल्क मे मुख की जितनी मुविधाएँ वढती है उसमे उतना ही दुख भी वढता है । गरीव मुल्क कम दुखी होते है। मेरे इस कथन से आपको थोडी हैरानी होगी, लेकिन यह न भूले कि गरीव कम दुखी होता है, क्योकि अभी उसकी आशाओ का पूरा का पूरा जाल जीवित है-अभी वह अपनी आशाओ मे जी सकता है, वह अभी सपने देख सकता है। वर्तमान मे सदा दुख है दूसरे के साथ । दूसरे के साथ सुख होता है सिर्फ . भविष्य मे। अगर सारा भविष्य नष्ट हो जाय और जो-जो भविष्य मे मिलना चाहिए वह आपको अभी, इसी क्षण मिल जाय, तो आप सिवा आत्महत्या करने के कुछ भी नही कर सकेंगे। इसलिए जितना सुख वढता है, उतनी आत्महत्याएँ बढती
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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