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________________ महावीर परिचय और वाणी २११ जितना तनाव हागा उतना ही निकास की माग होगा। इसी कारण पल गुरुकुल) म युवका का जिनगी को बेल बनाया जाता था। न परीक्षाआ की गम्भीरता थी। न जिदगी स लडन की गम्भीरता थी। जिदगी एक सेर था गुरतुर म, इस ए पच्चीस साल तक युवा काम के बाहर रह जात थे उन दिना। अब ऐसा नहा होता । वाप जब भी वेट मे मिलता है तब गम्भीर होता है । वटा भी बाप से बचा रहता है। मरा माह है कि आप बच्चा + साय खेलें--एक घटा परें और देखें भापकी पाम शक्ति म वितना फक पडन लगा है । चिन बनाएँ घर पी दीवालरा को स्वय रंगे। यह जारी नहा कि यह चिन पिसी बड़े चित्रकार के चित्र-जैसे हा, जरूरी यह है कि वह भापस शिवर । घर के लोगा के साथ नाचें, सरें--पभी घर के गाव साथ नाचा है आपन अकाम की मार वढना चाहत हो तो जीवन को सजनात्मव बनाएँ--दो चार क्षण भा सजन म रगाएँ, बगीचे म माम करें, ता, गाएँ, गम्भीरता या कुछ देर के लिए अलग कर द। पल पल जीयें, भविष्य और कामना से मुक्त हा, सजनात्मक बनें। चरित्र बनान म हा न रगें, बत्वि' जीवन मे थाटी मी रीला भी आन दें और, अतिम बात, व मी, मौका मिरे तो होशपूर्व समस्त दद्रिया के द्वार बद पर मातर द, भीतर सुनें। भीतर सूईं। इन्द्रिमा से जो बाहर किया है वह भीतर क न की माशि करें। भीतर वे अपने नाद है अपन स्वाद हैं।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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