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प्रथम अध्याय
अहिंसा अदुवा अदिग्नादाण ।
-भा० यु०१, अ० १, उ०३ अहिंगा और गिमा म युनियादी भेद है। जहाँ अहिंमा हमारा स्वान है मा अनित गुण है, पायी गयी है । हिंसर बनने के लिए हम कुछ पता पडा । हिंसा हमारी उपधि है, हमने उमे सोजा है, उमा निमाण किया है । अहिमा हमारी उपाय नाहो साती। आदमी समाव से हिमर नहा है, यह हिंगर हो नही गरता ।हिमा शिया टराव कही भी नहीं ले जाती और कोई भी व्यक्ति दुग्प पी पामा नहा
ता। हिंसा ऐक्सिडेंट' है, सयौगिक है-यह हमार जीवा की धारा रहा है। इमलिए जो हिराप है वह भी गोलीस घटे हिंगर नहा हा साता, अहिंसर पौवीरा घट गहिरार हा सकता है। हिंसर को किसी यतुल से भातर अहिमर होना ही परना है। असर म अगर यह हिमा पसा है तो इसलिए करता है कि पिही साप यह अहिंगर हो गये। गोरमा राम्य भी अपारी है और हिार का सत्य भी अहिंसा है। __सत्य और ब्रह्मपय पर विधायक हैं। घम की भाषा में इन दो पिपायर पाय यो छाडार राय | पारामर हैं। जिहें मैं पर महाया रहताय रा गरमा । जर पपांगो-अहिंसा, अपरिग्र अवीय बाम और अप्रमाएट जायेगे ता भीतर जा उपल ध होगा, पर होगा स प, और बाहर जो उपर कामा पार
गा ग्रहापय । मत्य या मप है जिस हा गीतराग ब्रह्मपम मा अपर जिम हम बाहर सोयेंगे ग्रहा जशी पर्या, पर-जसा आारण ! "पर-सारण उगोपा होगरता जा ईयर हो जाय । सत्व या जप है परनमान उमरा अभ है प्रसव । मायर-जसा हो गया दी जो पा होगी माना नाम पहा पर है। प्राय यसति ग्रहा जसा आपर।
अगर टीर ग ममता हिंगा पर मोरपिपारन गिरिमा पर विपार हा Trant? और मा पर पिगार हो गया। मान RT मामामा गमिाना है-हिमा गाशा गापा मार
१ गोवा पोगा परना एर रारा गो पारी है।