________________
द्वादश अध्याय
उपसहार
व ताण,
कुल विज्जाचरण सुचिष्ण ॥
न तम्म जाइ व
णणणत्य
सू० ० १, अ० १२, गा० ११
१
महावीर व समय में विचार की लीक छूट गई थी । आचाय थे, साघु थे लेकिन धारा मत हो चुकी थी । यह मृत धारा क्तिने समय तक चल सकती थी ? महावीर ने नई विचार दष्टि को जन्म दिया, नई हवा फली, नया सूरज निकला। लेकिन पुरा पर चरनवाले ललगा न नए को स्वीकार नहीं किया । व अपनी लोप पर ered गए। एसा भी हुआ कि महावीर न जो वहा था, वह भी चला और जो पिछली परम्परा थी वह भी चलती रही। परंतु परम्परा मान होने से कोइ जीवित नहीं होता । बरिन वात उल्टी है । जब बाइ चीज परम्परा बनती है तब वह मर गई होती है । आचायों वा होना यह सिद्ध नही पता कि वे बिसी जीवित परम्परा ये ही वशघर हो । सच तो यह है कि उनका होना इस बात को सार है कि अब कोई अनुभवी व्यक्ति जीवित न रहा । इसलिए जो जाना गया था उसको जाननवाले लोग गुरु वा काम निवाहन लगत हैं। साधु भी ह्नता साबुआ से कुछ होता है और न शिक्षवा से, जब तक रि जीवित अनुभव वालिय हुए कोई व्यक्ति न हो ।
महावीर व माग दगन में इन बान से कोई अपराध नहीं पढता
तीचवर के लोग शेप थे । उनमें जा भा समझदार साघव जीवित थे व महापार साथ आ गए। जो जिट्टी आर अये थ, आग्रह रत थे वे अपना पाट भरत गए । फिर एम व्यक्तिया वा जाम पिरो यक्तिया स नहा जाता जा सकता। जब भी जा में जरूरत होती है प्राण पुवार करते हैं, तब याद नन्याद उप चेतना वरुणा वापस लौट जाती है। एक वक्त था राम ईश्वर का शामराव भी उष्ट करते थे । अय लोग एगे हैं इनकार करन या भाषेष्ट भवसार से तार नहीं सत । वेद मान और
१ मनुष्य को जाति अथवा सदाचार ही उसे तार मरत है ।