________________
महावीर : परिचय और वाणी
,
1
यह भी सत्य है कि जिस प्रकार 'त्याग' शब्द ने अब तक गलती की, वसे ही मेरा 'भोग' शब्द भी गलती कर सकता है । सभी शब्द गलती कर सकते है । अन्तत. शब्द गलती नही करते, लोग गलती करते है । लेकिन 'त्याग' शब्द व्यर्थ हो गया है । त्याग के विपरीत कोई शब्द नही है सिवा भोग के । लेकिन यह भी स्मरण रहे कि मेरा भोग त्याग के विपरीत नही है । मैं कह रहा हूँ कि यदि दूसरी सीढी पर पैर रखना हो तो पहली सीढी छोडनी ही पडेगी । मेरा जोर दूसरी सीढी पर पैर रखने पर है, आगे वढने पर है -- पिछली सीढी छोडने पर नही है । रुग्ण चित्त त्याग की भाषा को समझ लेता है, स्वस्थ चित्त नही समझ सकता | 'त्याग' शब्द पर जोर देने का परिणाम यह हुआ है कि जो स्वस्थ जीवन्त और जीने के लिए लालायित है वह उस ओर नही गया है । मैं यह कह रहा हूँ कि यह जो जीवन्त धारा है इसे आकृष्ट करो । और यह तभी आकृष्ट होगी जब विराट् जीवन का खयाल इसके सामने होगा और कहा जायगा कि कुछ छोडना नही है, पाना है । और छोडना होगा ही इसमे, क्योकि विना छोडे कुछ भी पाया नही जा सकता । जीवन को जीना है, उसकी आत्यन्तिक उपलब्धियो मे, उसके पूर्ण रस मे, उसके पूर्ण सौन्दर्य मे । छोडना कभी भी चित्त के लिए आकर्षण नही बन सकता पाना ही चित्त के लिए सहज आकर्षण है । मेरी दृष्टि यह है कि महावीर ने घर छोड़कर जिस आनन्द की अनुभूति की, वह खबर देती है कि उन्होने घर छोडा नही, उन्हे बडा घर मिल गया । जो मिल गया है वह चारो ओर से उन्हे आनन्द से भर रहा है । लेकिन महावीर के पीछे चलनेवाले साधुओ को देखे । ऐसा लगता है कि वे सड़क पर खडे है और उनके पास जो था वह खो गया है और जो मिलना था वह उन्हें मिला नही । तो एक अधूरे मे अटक गए है उनके प्राण । वे कप्ट मे जी रहे है मानो, एक परेशानी मे है। हम किसी को परेशानी मे जीते देखकर आदर क्यो देते है ? असल मे इसमे भी बड़ी गहरी हिंसा का भाव है । परेशान आदमी को हम आदर देते है । परेशानी यदि स्वेच्छा से ली गई होती है तो हम उसे और भी आदर देते है । हमारा यह आदर भी रुग्ण है। असल मे हम दूसरो को दुख देना चाहते है | दूसरो की पीडा- परेशानी हमारे भीतर की किसी गहरी आकाक्षा को तृप्त करती है । जब कोई ज्यादा-से-ज्यादा सुख मे जाने लगता है तो हम दुख मे जाने लगते है । किसी का सुखी होना हमे दुखी वना देता है । मनुष्य जाति भीतर से रुग्ण है, इसकी वजह से त्यागियो ओर तपस्वियों को सम्मान मिलता है । अगर मनुष्य जाति स्वस्थ होगी तो सुखी लोगो को सम्मान मिलेगा । अब तक सिर्फ दुखी आदमियो को सम्मान दिया गया है । यह मनुष्य जाति के भीतर दूसरे को दुख देने की प्रवल हिस्सा आकाक्षा का हिस्सा है ।
१६६
यह न भूले कि कॉटा चुभोनेवाला भी बीमार है और कांटा चुभोनेवाले को आदर देनेवाला भी खतरनाक है. रुग्ण है । इसी प्रकार फल संघनेवाला भी स्वस्थ है और