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महावीर परिचय और वागी एमात ही है पड है। इसीलिए न मी सहिन और एकातिर है ययानि महायार
कहा है वह न्मे ही पपड सरन म समय होता है। महावीर रा समग्र उसकी पर" म हा आ सकता, इसलिए यह जन होवर मंठ जायगा। वह अनयात या मा 'वाद' बा लेगा, मनावीर ये दान को भी दष्टि बना लेगा और उस प र बैठ जायगा। इसलिए सभी अनुयायी पड सत्य का पप डनयाले हात हैं। ममी सपाला पा यही आग्रह हाता है कि मरा सट रामग्र है। ऐस दाव सारा मनुप्य गानि का सह-सड म बांट दत हैं। मनुप्य, जो जवट है, इसी तरह टुकड़ा और मम्पया म पटपर टूट गया है। दष्टि पर हमारा जोर होगा तो सम्प्रदाय हाग, दान पर गार हागा ता सम्प्रदाय नहीं हागे । मेरा सारा बल दान पर है, दृष्टि पर नहा । महावीर का भी जार दशा पर था। दष्टि ही सवरा बडी बाधा है दान म। दप्टिमुक्त, दृष्टिाय हारर ही मैं पूण या जान सरता हूँ।
यह प्रान नी स्वाभाविप है घि महावीर ने घर म ही रबर साधा क्या नही पी? पर और बाहर हम दो विरोधी चीजें मालूम पड़ती हैं। इस बात मा हम गयार नहीं आता fr पर और बाहर, दोना एक ही विराट पे दो हिस्ग हैं । जो सांग एरक्षण पहले याहर पी वह एप क्षण वाद भीतर हो जाती है और पुन बाहर । पपा बाहर है और मया भीतर हमारी जो दृष्टि है वह वही सोमा है। घर से हमारा मतपय है जो अपना है और बाहर से हमारा मतरर है जो अपना नही है ।रिन पपा ऐमा नहीं हो सपता कि शिगी गरिए पुछ भी एमा हो जो पना नहीं है ? अगर किसी व्यक्ति रिए ऐसा हो जाय ता घर और बाहर पापार ही पदा न हो। तव पर ही रह गया, यादर गुट न रहा या पर भी पहा है fr बाहर ही रह गया, पर पुए भी रहा। एप यात तय है fr जिरा पति यो ािई पड़ना शुरू होगा-उगे बाहर और भोर मी जो भेद, "गा है या मिट जायगी । पही बार है यही नीर। पर मनीतर हयाएँ मुछ मग पर यात्रा पर जाममा परम आ गया है वह एछ अलग है
समाजा बाहर हो, वाहा फर हैसि दीया मिली प्रगती सारो, गोमामा नयापापी स्वरा है। जय स्यामा मेलिपाई परमे पार जा लय एम नरनिराशि उमा पर पिा है।