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महावीर : परिचय और वाणी वाली है, पर अब न बनेगी। नया समय वे दोनो भिक्षा लेकर वापस लौटे। इन वीच पानी वरस गया था और उन पीधे ने कीचड में फिर अपनी जड़े पक्ट ली थी और वह फिर सटा हो गया था। उसे देखकर महावीर ने कहा कि देव । वह कली फूल बनने लगी, पौधा लग गया हे जमीन में और कली फूल बन जायगी ।
जिसे दूर की बाते दिखाई पड़ती है उसे बहुत मी ऐनी बाते दिखाई पड़ती है जिन्हें हम समझ नही पाते । महावीर के नवध मे तो कई ऐनी बाते है जो माघारण लोगों की समझ मे मुश्किल से आती है। जैसे, याम तौर पर महावीर मरे होकर ध्यान करते है। यह भी माघारण नहीं लगता, क्योकि साधारण लोग बटकर ध्यान करते है। महावीर को परम ज्ञान की उपलब्धि होती है गोदोहासन में । यह वडा अजीव आसन है। वे गाय नही दुह रहे थे वे वैसे ही बैठे थे जमे कोई गाय को दुहते नमय वैठता है। कारण क्या था? यह वडी विचित्र स्थिति मालूम पड़ती है । इसमे तीन याते समझनी जरूरी है।
पहली बात तो यह है कि गोदोहामन हमे असहज लगता है, लेकिन सहज और असहज हमारी आदतो की बाते है। पश्चिम के लोगो के लिए जमीन पर बैठना असहज है। जो अभ्यास मे है, वही सहज मालूम पड़ता है, जिसका अभ्यास नहीं है, वह असहज मालूम पड़ता है। हो सकता है कि महावीर पहाड़ पर, जगल में, धूप-ताप मे रोज इसी आसन में बैठते रहे हो। यह बहुत कठिन नहीं है। फिर महाचीर की एक धारणा और भी अदभत है। वे कहते है कि पृथ्वी पर जितना ही कम दवाव डाला जाय उतना ही अच्छा। इसमे उतनी ही कम हिंसा होने की संभावना है । महावीर रात सोते है तो करवट नही बदलते, क्योकि जब एक ही करवट सोया जा सकता हो तो दूसरी करवट विलासपूर्ण है। दूसरी करवट लेने में कोई चोटी, कोई मकोडा अकारण मर सकता है।
कुछ कौमो मे जव लोग मिलते है तो नाक से नाक रगड कर नमस्कार करते है। यह उनके लिए सहज है। कुछ लोग हैं जो जीम निकालकर नमस्कार करते हैं। पश्चिम मे चुम्वन सहज सरल-सी बात है। हमारे लिए यह मारी ऊहापोह की बात कि कोई आदमी सडक पर दूसरे आदमी को चूम ले । जो अभ्यास मे हो जाता है वह सहज लगने लगता है। महावीर अहिंसा की दृष्टि से दो पजो पर वैठते रहे होगे। उनके लिए यह सहज भी हो सकता है। इस आसन मे सो भी नही सकते । महावीर कहते है-भीतर पूर्ण सजग रहना है और पूर्ण सजगता के लिए अथक श्रम जरूरी है । हो सकता है कि निरन्तर प्रयोग से उन्हें पता चला हो कि उकडू वैठने से नीद नही आ सकती। सबसे बड़ी बात तो यह है कि महावीर का मस्तिष्क परम्परागत नहीं है। वे किसी भी चीज मे किसी का अनुकरण नहीं करते। उन्हें जो सरल और आनन्दपूर्ण लगेगा, वह वैसा ही करेंगे। हम सब परम्परा के अनुयायी हैं । जैसे सभी