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महावीर को खोजने का एक ढग तो यह है कि उनके सम्बन्ध मे जो परम्परा है, जो शास्त्र है, जो शब्द सगृहीत है, हम उनमे जाये और उन मारी परम्परा के गहरे पहाड को तोडे, लोजे और महावीर को पकडे । महावीर को हुए दाई हजार वर्ष हुए। इन ढाई हजार वो मे महावीर के सम्बन्ध मे जो भी लिखा गया, हम उम सबने गुजरे और महावीर तक जायँ। यह शास्त्र के द्वारा जाने का रास्ता होगा। यद्यपि यही आम रास्ता है, फिर भी मैं मानता है कि उन रास्ते ने कभी जाया ही नहीं जा सकता। इस रास्ते पर चलनेवाले वहाँ पहुँचते हैं जहां महावीर से कोई सम्बन्ध नहीं होता। इसके कारण है। महावीर ने जो अनुभव किया है, किसी ने भी जो अनुभव किया है, उसे गब्दो की चारदीवारी मे बद करना कठिन है । जिसे भी कोई गहरी अनुभूति हुई है, उमे शब्द की असमर्थता का भी तलान ज्ञान हुआ है। परमात्मा का, सत्य का, मोक्ष का अनुभव बहुत गहरा अनुभव है। प्रेम का साधारण अनुभव भी मनुष्य को कुछ कह सकने में असमर्थ बना देता है। प्रेम के सम्बन्ध मे अक्सर वे ही लोग मुखर पाए गए हैं जिन्होंने प्रेम का अनुभव नही किया । यदि प्रेम के सम्बन्ध में कोई वहुत आश्वासन से वाते करता हो तो समझ ही लो कि उसे प्रेम का अनुभव नही हुआ। प्रेम के अनुभव के बाद सकोच आता है, आश्वासन नहीं रह जाता। प्रेमी चिन्तित होता है कि कैसे कहूँ, क्या कहूँ ? जो वात कहना चाहता हूँ वह पीछे छूट जाती है, जिसे कभी सोचा भी न था वह वरवस निकल आती है। जितनी गहरी अनुभूति, उतने ही थोथे ओर व्यर्थ है शब्द | शब्द है सतह पर निर्मित, उनके द्वारा निर्मित जो सतह पर जीते रहे है। इसी कारण अब तक सन्तो की कोई मापा विकसित न हो सकी।
जब कोई व्यक्ति अतीन्द्रिय सत्य को जानता है तो उसकी सभी इन्द्रियाँ एकदम व्यर्थ हो जाती है, वह मौन हो जाता है। बोलना पडता है इन्द्रिय से और सत्य जाना गया है वहाँ से जहाँ कोई इन्द्रिय माध्यम नही । अगर इन्द्रिय माध्यम ही न हो अनुभव का, तो फिर इन्द्रिय कैसी रही? इसलिए जो जानता है, मुश्किल मे पड़ जाता है। उसका मौन भी बडी पीडा देता है। चारो ओर रुग्ण, विक्षुब्ध मनुप्यो को देखकर उसे लगता है कि कहूँ और इन्हे भी अपनी अनुभूतियो का साझेदार वनाऊँ। वह अपने उस अन्तरतम मे झाँकता है जहाँ परम आनन्द घटित हो गया है और उसे लगता है कि वह व्यक्ति भी उसे देख सकता है जो निकट खडा है। कोई भी ऐसा नहीं जिसे ऐसी अनुभूति नही हो सकती। परन्तु उसके शब्द उसकी अनुभूतियो को दूसरो तक पहुँचाने मे एकदम असमर्थ होते है।
महावीर-जैसा व्यक्ति जो बोलता है वह एक प्रतिशत भी वह नही है जिसकी