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मुनिश्री के प्रति दो शब्द ..
भक्ति जीवन के लिए वह रसायन है जो जीवन में अमूलाग्र बदल कर सकती है। भक्ति के रस में मनुष्य सारी दुनिया को ही नहीं बल्कि अपने आपको भी भूल सकता है। भक्ति के भाव में इंद्रियों के विषय भी भूल सकता है। भक्ति के भाव में इंद्रियों के विषय शमन हो जाते हैं । विषयों के शमन होते ही मस्तिष्क की कोशिकाएँ चार्ज हो जाती हैं, जिससे हमारा ज्ञान दिनों-दिन बढ़ता चला जाता है। भक्ति सहनशक्ति, साहस आदि कई गुण पैदा कर सकती है।
आचार्य सुविधिसागरजी से दीक्षाप्राप्त ओजस्वी वक्ता, शास्त्रोक्त निर्भिक उपदेशक परम पूज्य मुनिश्री सुवन्द्यसागरजी महाराज इनका वर्ष २००८ का पावन वर्षायोग अकोला जिले के बोरगांव (मंजू) में जिस प्रभावना के साथ हुआ वह शब्दातीत है। परन्तु इस ऐतिहासिक वर्षायोग का खर्च अत्यल्प हुआ। (मात्र १२०० रुपये)। अगर इतने कम खर्च में किसी मुनि का वर्षायोग हो सकता है तो छोटी से छोटी समाज, कसये से कसया, नगर से महानगर तक की कोई भी समाज अपने यहाँ वर्षायोग करवा सकती है।
मुनिश्री सुवन्द्यसागरजी की मुनिचर्या आगमोक्त है। वे निस्पृही तथा परिग्रह रहित हैं, जैसा कि हमें आगम में पढ़ने को मिलता है कि साधु अपने पास तिलतुष मात्र भी परिग्रह नहीं रख सकते हैं । आगम पढ़ने के बाद लगा कि यह साधु स्वयमेव एक जीवन्त आगम है । उन्होंने हर आवश्यक हर आगमोक्त मुनिचर्या को अपने जीवन में उतार लिया हैं। मुनिश्री गृहस्थों से कथा-विकथा में नहीं पड़ते हैं। वे न तो अखबार पढ़ते हैं, न हि किसी भी प्रकार की लौकिक किताबें पढ़ते हैं, यंत्र-तंत्र में उलझते नहीं हैं। बल्कि आगमयुक्त शास्त्रों का अध्ययन करते रहते हैं। श्रावक अगर किसी प्रकार का धार्मिक शंका-समाधान करने के लिए आते हैं, तो उन्हें आगम का प्रणाम दे देते हैं, अपने मन से कुछ भी नहीं बताते हैं।
कड़वे सच
मुनिश्री को टीबी जैसा दुर्धर रोग हआ था, फिर भी न हि किसी प्रकार की अशुद्ध दवाई लेते थे, न हि कोई तेल लगाया। नैपकीन का भी कभी उपयोग नहीं किया। इसके बावजूद भी अपने धैर्य को कम नहीं होने दिया। अपनी आवश्यक क्रियाओं मे भी कभी शिथिलपणा नहीं आने दिया। हम गृहस्थों को धर्म से जोड़े रखे रहे। गृहस्थ भी उनसे जुड़े रहे। मुनिश्री की भाषा व व्यक्तित्व में चुंबकीय शक्ति है। बोरगांव (मंजू) समाज उन्हें जिनधर्म प्रभावक संत कहने लगी ।
___मुनिश्री की दीक्षा ५ फरवरी २००४ को गजपंथा में हुई थी । मुनिदीक्षा से लेकर अब तक मुनिश्री ने आगमोक्त शास्त्रों का गहन अध्ययन किया है। वे अद्भुत शब्द विज्ञान के धनी है। उनमें लिखने-पढ़ने का ज्ञान, बेजोड़ तर्कशक्ति, सरलता, सौम्यता, सहजता होकर भी पंथवाद से दूर रहकर केवल निर्ग्रन्थ रहते हुलए अद्वितीय अध्ययन रत होकर वे "कावे सब को हम सब के बीच लेकर आये हैं। मुनिचर्या संबंधी हमारी भ्रांतियाँ हटाने के लिए मुनिश्रीने तार्किक एवं आगमिक कड़वे सच इस शास्त्रसार रूप लघुग्रन्थ का संकलन किया हैं।
कड़वे सच यह अतिशय महत्त्वपूर्ण कृति हम सभी तक पहुँचानेवाले परम पूज्य मुनिश्री सुवन्द्यसागरजी महाराज है। हमारी समाज ऐसे गुरुवर के चरणों में विनम्रता पूर्वक भक्तियुक्त नमोस्तु करती है, जिनके शुभाशीर्वाद से हम सभी बोरगांव (मंजू) वासियों को जिनधर्म का सम्यग्ज्ञान हुआ।
जिनका परम पावन चरित्र जल निधि समान अपार है।
जिनके गुणों के कथन में हम सब न पावे पार हैं। बस वीतराग विज्ञान ही जिनके कथन का सार है। उन वीतरागी गुरुवर को वंदना शत-शत बार है।।
सौ. सारिका किशोर अजमेरा बोरगांव (मंजू), जिला- अकोला (महाराष्ट्र)
मो. ८९८३७०४२०९
कड़वे सच