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सनी कप
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स्तंभन यंत्र बज्राकाराग्रेरेखानवककृतचतुःपष्टिकोष्टान् लिखित्वा ।
बा बिंदु त्रिदेहं तदनुलिखितदंतश्च लीन्तस्य वान्तः ॥
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-ग्लौं दद्यान्नाम गर्म कुलिशयुगल विद्वततस्त 'द्वि दिक्षु । रान्तं वज्रान्तराले वलय तिमथत त्स्वेन मंत्रेण बाह्ये ॥ १६ ॥ SKE
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अर्थ- बज्राकार रेखाओंके प्रत्येक ओर आठ२ कोठे बनाकर कुल चौंसठ कोठे बनावे। उनमेंसे प्रथम चारों ओर ॐ फिर ह्रीं फिर लीं और फिर भ लिखकर बीच स्थानमें दो बच्चों से बिंधे हुए नामको ग्लौंके अंदर बनाये । और उसकी विदिशाओं में ल लिख देवे। समस्त यंत्रके चारों ओर बाहर निम्न लिखित मंत्र लिख दे ॥ १६ ॥
आवेष्टन मंत्र
"ॐ बज्रक्रोधाय ज्वलर ज्वालामालिनि ह्रीं झीं ब्लें द्रां श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रः देवदत्तस्य क्रोधं गतिं मतिं जिह्वांच हनर दहर पचर विध्वंसय २ उत्कृष्ट क्रोधाय स्वाहा ।" यंत्रभिदं भुवि पलके कुडचे भू विलिख्य तालेन । मंत्रेण पूजितं सत्कुर्य्यादयेप्सितं स्तंभं ॥ १७ ॥
अर्थ- इस यन्त्रको पृथ्वीपर कुड्य पर अथवा भोज पत्र पर ताल से लिखे। और मंत्रसे पूजन करनेसे इच्छानुसार स्तंभन होता है ॥ १७ ॥
षष्टम परिच्छेद ।
जिह्वा स्तम्भन यन्त्र नानः कोणेषु दत्वा ल मय परिवृतं वार्धिना बिंदु नाव्व । लं, बीजे ष्टितं तत्कुलिश वलयितं वेष्टितं व त्रयेण ॥ भूर्जे गौरोचना कुंकुम लिखितमतः कुम्भकाराग्रहस्तान् । मृत्स्नामादाय कृत्वा कृतिमयतदचत्रमास्ये निधाय ॥ १८ ॥
अर्थ- नामके कोनोंमें लं लिखकर उसको बिंदु सहित ब से वेष्टित करे। फिर उसके चारों ओर दो मंडल बनाकर पहिलेको, लं, बीजोंसे और दूसरेको तीन ठ, से भरे इस rashi भोजपत्र पर गौरोचन और कुकुमसे लिखे । फिर कुम्हारके हाथकी मिट्टी लाकर उसे अपने प्रत्यर्थिकी छोटीसी मूर्ति बनाकर उसके मुख यह यंत्र रख दे ॥ १८ ॥
परपुष्टका शराबय ॥
स्वस्तां प्रणिधाय सम्यगथ जंभे मोहिनी संधुजा ॥ स्वाहा मंत्र पदेन पीतकुसुमैरम्यर्च्य यातः पुमान् । प्रत्यर्थि व्यवहारिणो विजयते तजिह्नकाः स्तम्भयेत् ॥ १९ ॥
अर्थ-उस मूर्तिका मुख मजबूत काटोंसे चीरकर उसको दो मिट्टीके शराबोंमें रखकर निम्नलिखित मंत्रसे उसकी पीले पुष्पसे पूजा करता है। उसके विरोधी व्यवहारीका जिह्वा स्तम्भन हो जाता है