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ज्वालामालिनी कल्प। Angr-m सोलह प्रतिहार
मेष १, महामेघ २, ज्वाल ३, लोल ४, काल ५, स्थित ६, अनील ७,
रौद्रातिरौद्र सजला जल हिमका हिमाचलस्तथा लुलितः । द्वौ द्वौ च महाकालौ नंदीति लिखेत् प्रतिहारौ ॥ २२ ॥
अर्थ–रौद्र ८, (महारौद्र) अतिरौद्र ९, सजल १०, अजल ११, हिमका १२, हिमाचल १३, लुलित १४, महा-- काल १५, और नन्दी १६ ॥ इन प्रतिहारोंको लिखे ॥२२॥
बहिरप्यु दधि चतुष्कं पुनरुपरि सु पुष्पं मंडपं रचयेत् । तोरण माला दप्पेण घंटा ध्वज विरचनं कुर्यात् ॥ २३ ॥
अर्थ-बाहिर चारों समुद्र फिर ऊपर फूलोंके मंडप बनावे, और उसको तोरण, माला, दर्पण, घंटा और ध्वजाओंसे सजावे ॥ २३ ॥ वरबीज पूर मलयजकुसुमाक्षतचर्चितान् धवल वर्णान् । कोणस्थ मूशल मृद्ध सुपूर्ण घटान् स्थापयेद्विधिना ॥२४॥
अर्थ-फिर सुन्दर बीज चंदन पुष्प और अक्षतसे पूजे हुए धवल वण के मुख तक भरे हुए घड़ोंको उनके ऊपर मुशल । रखकर कोनों में रखकर उनकी विधि पूर्वक स्थापना करे ॥२४॥
मंडलमध्ये भूतं विलिव्य संस्थाप्य मृण्मयं चान्यत् । मंडलमध्येप्याग्नेया कोणेष्ठनु क्रमशः ॥ २५ ॥
चतुथ पाउछन् । अर्थ-मंडलके बीचमें दूसरे मिट्टीके जने हुए भूतको लिखकर मंडलके बीचमें आग्नेय आदि कोणोंमें क्रमशः ।। कुर्यास्त्रकोण कंडं कमल्लिका कटहा वृत कण्डानि ।
खदिगंगारक तैल सुपानीयांगार पूर्णानि ॥ २६ ॥ Ir अर्थ-तीन कोणेवाले कुण्ड बनावे और कुण्डोंके चारों ओर कमल्लिका और कडाही रक्खी हों, और वह खैरके. अंबारों. तेल जल और अंगारोंसे पूर्ण हो ॥२६॥
१०२ : इस यंत्रका उपयोग ग्रह नाम रकार वृतं पत्रोपरिलिख्य निक्षिपे हृदये। पिष्ट घटितस्य सिक्थक मयस्य वा भूत रूपस्य ।। २७ ॥
अर्थ-फिर पत्ते पर ग्रहका नाम अमत रूपवाले पिसे हुए मोमसे लिखकर और उसके च्यारों और रकार लिखकर उसे बनाये हुए कुण्डके अपूर्व बोचमें रक्खे ॥ २७ ॥
अन्यच्च ग्रह रूपं पत्रे च पटे पृथक् समालिख्य । रूपस्य सत्य संधिषु रकार पिंडं लिखेन्मांतमान् ॥ २८ ॥
अर्थ-फिर ग्रहके दूसरे रूपको पत्ते और वस्त्र पर पृथकर लिखकर बुद्धिमान् पुरुष उसकी संधियोंमें, रकार, बीज पिण्ड पुरुषको लिखे ॥ २८ ॥