________________
ज्वालामालिनी कल्प,
H
EETLEMEReहरयः
ॐ ह्रीं क्रों छम्लव्य झम्ल्व्य समस्त वर्ण सब लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधू चिन्ह सपरिवार हे धनद ! आत्मद्वार रक्ष२ इदमध्य पाद्यं गंधमक्ष पुष्पं दीपं धूपं चरुं बलिं फलं गृहर स्वाहा । अचनम् । .. HAP
ॐ ह्रौं को छम्लव्यं झम्लव्य समस्त वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधू चिन्ह सपरिवार हे धनद ! स्वस्थान गच्छ२ जः जः जः । विसर्जनम् । 0
पाइप ॐ ह्रीं क्रों झम्व्यू श्वेत वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन बधूचिन्ह सपरिवार हे ईशान ! एहि२ संवौषट् । आह्वाननम MEERUT
"ॐ ह्रीं क्रों झल्ब्यू श्वेत वर्ण सव लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन बध चिन्ह सपरिवार हे ईशान ! एहिर तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं क्रों इम्ल्यू श्वेत वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध वाहन वधू चिह्न सपरिवार हे ईशान ! मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् |
ॐ ह्रीं क्रों इम्ल्व्यं श्वेत वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध बाहन बधू चिह्न सपरिवार हे ईशान ! आत्म द्वारं रक्षर इदमध्ये पाद्यं गंधमक्षतं पुष्पं दीपं धूपं चहें बलिं फलं गृह गृह स्वाहा । अचनम् ॥EDMETEpap
ॐ ह्रीं क्रो इम्ल्यू श्वेत वर्ण सर्व लक्षण संपूर्ण स्वायुध
चतुर्थ परिच्छेद ।
(५५ बाहन बधू चिह्न सपरिवार हे ईशान ! स्व स्थानं गच्छर जा जा जः ॥ विसर्जनम् ॥
सर्वतो भद्र मण्डल Itgi रेखात्रयेण परस्पराग्रविद्वेन पंचवर्णेन । . - चतुरस्त्रमष्टहस्तं सविस्तर मंडलं विलिखेत् ॥ १२ ॥
अर्थ-फिर एक आठ हाथके चौकोर विस्तृत मंडलको पांच वर्णकी तीन रेखाओंसे जिनका अग्र भाग आपसमें बिंधा हुआ हो बनावे ॥ १२॥ चतुसृषु दिक्षु द्वे द्वे रेखे दद्यात्तथार्द्ध परिमाणे । । एवं सति षट्कोण दिक्षु विदिक्ष्वपि च चत्वारः ॥ १३॥
अर्थ-चारों दिशाओंमें दोर रेखा आधे परिमाणमें बनावे, इस प्रकार दिशाओंमें छह कोठे और विदिशाओंमें च्यार हो जावेंगे ॥ १३ ॥ अभ्यन्तराष्ट दिग्गत कोष्टेष्वथ मातृका गणं विलिखेत् । स सनयास्यायुध सहिता प्रतियः शेष कोष्टेषु ॥ १४ ॥
अर्थ-विदिशाओंके अंदरके आठ कोठोंमें मातृका गण उनके आसन सहित लिखे और शेष कोठोंमें उनके प्रतिहारोंको लिखे ॥ १४ ॥ Sine अभिणा मा