________________
WINIINDAN
Namasam
NAINANINARUNICONTINike
MORNIRMIRMIRMIRMIRRORMIRRORIES
तृतीय परिच्छेद । फिर भूताख्य नामके गायत्री मंत्रका तीन नाम उच्चारण (करके अग्नि जलावे, फिर संधुक्षण मंत्रसे तीनवार अग्निका संधुक्षण करे ॥ ३९॥
4 भूताख्य गायत्री मंत्र ।
"ॐ वज्र तुण्डाय धीमहि एक दंष्ट्राय धीमहि अमृतं वाक्यस्य संभवेत् तन्नोदहः प्रचोदयात् ।” प्रणवनयपिण्ड पंचकलायुत तलरेफयुत धकार निरोधं ।
खं खं खड्गै रावण सद्विद्ययाथ घातय मुगलं ॥ ४० ॥
३०]
ज्वालामालिनी कप अर्थ-ॐ राम ज्वालामालिनि डी की द्री ज्वल ज्वल रररररां ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हुँ है। धग धग धू धू धूमांधकारिणि ज्वलशिखे देवान् दह दह - नागान् दह दह यक्षान् दह दह गंधर्वान् दहर ब्रह्मराक्षसान् दह२ भूत ग्रहान् दहर व्यन्तर ग्रहान् दह२ सर्व दुष्टग्रहान् दहर शतकोटि देवतान् दह दह सहस्त्र कोटिपिशाचराजानं 'दहर लक्षकोटिअपस्मार ग्रहान दह दह घे घे स्फोटय स्फोटय
मारय मारय दहनाक्षि प्रलय धगद्धगित मुखि ज्वालामालिनि हाँहीं ह हः सर्व दुष्ट ग्रह हृदयं हूँ दह२ पचर छिंद भिंदर ह ह ह ह हाः हाः आं क्रों क्षी ज्वालामालिन्याज्ञापयति । -हुँ फट् घे थे।"
यह दहन मंत्र और होम मंत्र है ॥३४-३७॥ । अग्नि त्रिकोण कुड़े मधुरत्रयसर्वधान्यसर्वपलवणैः।
राज पलाश शमितरु काष्टः कुर्खाद् बुधो होम ॥ ३८ ॥ भूर्तख्यागायत्रीमुच्चार्य त्रिः सकृद्ध मेदग्निं । श्रीन्वाराग्नित्यग्ने रादौ संधुक्षणं कुर्यात् ।। ३९ ॥
।। अर्थ-त्रिकोण कुण्डमें, घृत, दुग्ध और मधु, सब “धान्य, सफेदसरसों, और लवणको लेकर पलाश और शमीकी • समिधासे होम करै ॥ ३८ ॥
चा"
.
सचंद्रहासेन द्विच्छेदय भेदय द्विः ऊ ऊ खं खं। ई सं फट्२ घे२ मंत्रोऽयं जठर भेदि स्यात् ॥ ४१ ॥
"धल्यू ज्वालामालिनि, ही, क्लीं, ब्लू, द्रो, द्रों, क्रां, घी, ध्रु, नौं, घ्रः, हाः, , , खं, खं, खड्गै रावण सद्विद्यया घातय२ सच्चंद्रहासड़गेन छैदयर भेदय२, ऊं, ऊं, खं, खं, है, स, हां, आं, क्रों, क्षी, ज्वालामालिन्याज्ञापयति हुँ फट्२ घे थे।
यह उदर भेदी मन्त्र है। इसको खड्ग रावण विद्या ऋहते हैं ॥ ४०-४१॥
प्रणवन सहित ऊपिंडो गुप्तोचरितः स्ववायु निर्गमनः । M हाः पूर्णेन्दु समेतः स्यात् मुष्टि ग्रहण मंत्रोऽयं ॥ ४२॥ .