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महारिसिस्स गोयमस्स तवोवणे महातवो नाम कोइ मुणी निवासिओ । तेण कोइ मूसगो वायसेण अवहरिज्जमाणो दिट्ठो । तओ तेण कारुणिगेण सो वायसाओ मोइओ, अप्पणो कुडीरे संवडिओ य । अह अन्नया कयाइ बिडालो तं मूसगं खाइउं उवधाविओ । तं विलोइऊण मुणिणा बुत्तं "मूसग, तुमं मज्जारो होहि” त्ति । अह सो मुणिस्स पहावेण बिडालो संजाओ । परं साणं दट्ठूण पलाइओ । तओ मुणिणा परिजंपियं "जं कुक्कुराओ भीओ सि, तं तुमं कुक्कुरो भवाहि" त्ति । अह सो मुणिवयणाओ सारमेओ भूओ । परं जया वग्घं पासिऊण दूरं निग्गओ, तया तेण मुणिणा सो वग्घो कओ ।
पच्छा तं मुणिं वग्घं च एगवासे निरूविऊण सव्वे जणा “अणेण मुणिणा मूसगो वग्घंत्तं उवणीओ” त्ति सोवहासं परिजंपंति । एयं सोच्चा तेण वग्घेण विचिंतियं "जाव अयं मुणी जीवइ ताव इमं मे सरूव अक्खाणयं अकित्तिकरं न विणासेज्जा ।” अओ सो मूसग - वग्घो तं मुणिं हंतुं उवागओ । मुणिणा तं नाऊण “ पुणो वि मूसगो भवसु" त्ति संलविऊण तहेव कओ ।
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पाठ १२ मूसग - वग्घो
इस कथा में भूतकालवाचक क्रियापदों का प्रचुर मात्रा में उपयोग किया गया है । पूरी कथा ही भूतकाल में बतायी है। यद्यपि 'इत्था' और 'ईसु' ये दो प्रत्यय भूतकाल के होते हैं तथापि इस पाठ में अलग ही तरीके के भूतकाल के प्रत्यय दिये हुए हैं। उन्हें क. भू.धा.वि. याने कर्मणि भूतकालवाचक धातुसाधित विशेषण कहा जाता है । ये विशेषण क्रियापदों से बनते हैं लेकिन भूतकाल के अर्थ में प्रयुक्त किये जाते हैं । जैसे कि -
निवसिओ रहता था ।
मोइओ छुडाया।
उवधाविओ - धावा बोल दिया ।
संजाओ - हो गया, बना ।
भूओ हो गया।
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कओ - किया, बनाया ।
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दिट्ठो - देखा ।
संवडिओ - संवर्धन किया ।
पलाइओ - भागा ।
परिजंपियं - कहा । निकल गया ।
पास आया ।
निग्गओ उवागओ
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मूषक व्याघ्र (चूहा और बाघ) (अनुवाद)
महर्षि गौतम के तपोवन में 'महातप' नाम के कोई मुनि रति थे । एक दिन उन्होंने देखा कि, कोई एक वायस (कौआ) एक मूषक का ( चूहे का) अपहरण कर रहा है (उठा कर ले जा रहा है।) । तब उस दया तत्पर मुनि ने उस चूहे को कौओ से छुडाया और अपनी कुटी में चूहे का संवर्धन किया । एक बार एक बिल्ली ( बिडाल) उस चूहे को खाने के लिए दौड़ पड़ी। वह देखकर मुनि ने कहा, 'हे मूषक, तुम मार्जार (बिल्ली ) हो जाओ ।' अब शीघ्र ही मुनि के प्रभाव से वह चूहा 'बिल्ली' बन गया । लेकिन एक श्वान को (कुत्ते को ) देखकर भागने लगा । तब मुनिने कहा, 'हे बिडाल, तुम श्वान से (कुक्कुर से) भयभीत हो रहे हो, इसलिए तुम श्वान ही हो जाओ ।' मुनिवचन से वह बिडाल 'श्वान' सारमेय बन गया । परन्तु दूर से एक व्याघ्र को (बाघ को) देखकर वह दूर भागा । तब मुनि ने उस श्वान को (तुरन्त) 'व्याघ्र' बनाया ।
उसके अनन्तर मुनि और व्याघ्र को एक कुटीर में देखकर सब लोग उपहापूर्वक बोलने लगे कि, 'इस मुनि ने मूषक को ही व्याघ्र बनाया है।' लोगों के ये वचन सुनकर व्याघ्र ने विचार किया, 'जब तक यह मुनि जीवित है तब तक मेरा सच्चा स्वरूप प्रगट करनेवाला यह दुष्कीर्तिकर प्रवाद नहीं मिटेगा ।' इसी वजह उस मूषक - व्याघ्र ने मुनि को मारने के लिए उसपर धावा बोला। मुनि ने उसका इरादा जानकर झट से बोल दिया