________________
दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य इन पाँच शक्तियों से विघ्न अन्तराय कर्म पाँच प्रकार का है।
आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरापम कोटी कोटयः परा स्थितिः । ।१४।।
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडा कोडी सागर की है।
सप्ततिर्मोहिनीयस्य।।१५।।
की है।
मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति ७० कोडाकोडी सागर
विंशतिर्नामगोत्रयोः।।१६।।
नाम कर्म और गोत्र कर्म की, उत्कृष्ट स्थिति २० कोडाकोडी सागर की है।
त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यायुषः । । १७ ।।
आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति ३३ सागर की है।
अपरा द्वादश मुहूर्त्ता वेदनीयस्य । १८ ।।
की है।
वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति १२ मुहूर्त की है।
नामगोत्रयोरष्टौ।।१९।।
नाम कर्म और गोत्रकर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त
शेषाणामर्न्तहूर्त्ता।।२०।।
बाकी के पाँच कर्मों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की