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एकप्रदेशादिषु भाज्य: पुद्गलानाम् ।।४।। उन पुद्गलों की स्थिति लोकाकाश के एक प्रदेश आदि में विकल्प से जानना चाहिए। अर्थात् लोकाकाश के एक प्रदेश में अवगाहन सामर्थ से सूक्ष्म परिणाम से बहुत पुद्गलअणु स्कंध ठहर सकते हैं।
असंख्येयभागादिष जीवानाम।।५|| लोक के असंख्यातवें भाग आदि में जीवों का अवगाह है।
भावार्थ- लोक के असंख्यातवें प्रदेश को आदि लेकर-संख्यात असंख्यात प्रदेश (समस्त लोकाकाश प्रमाण) तक जीव का अवगाह है; केवली भगवान् समुद्घात अवस्था में लोकपूर्ण आत्म प्रदेश करते हैं और वह असंख्यात प्रदेशी एक जीव भी प्रदेशों में संकोच विस्तार गण होने से अल्प क्षेत्र में अवगाहन करता है।
प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत्।६॥
प्रदेशों में संकोच विस्तार गुण होने से दीपक की तरह, भावार्थ- असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश है उसमें अनंत पुद्गल अनंतानंत असंख्यात प्रदेशी जीव कैसे अवगाह कर सकते हैं?
उत्तर- जिस प्रकार एक दीपक की रोशनी जितने विस्तृत क्षेत्र में फेलती है वही दीपक की रोशनी अल्पक्षेत्र में संकोचगुण से अल्पक्षेत्रस्य हो जाती है उसी प्रकार असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में अनंतानंत जीव पुद्गलों का संकोच विस्तार गण होने से अवगाहन होता
गतिस्थित्युपग्रहौ धर्माधर्मयोरुपकारः।।१७।।