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वह सम्यग्दर्शन निसर्ग और अधिगम के भेद से दो प्रकार का होता है। जो अपने खुद के परिणामों से पैदा है वह निसर्गज तथा जो पर के उपदेश, शास्त्र श्रवण गुरु की शिक्षा आदि से होता है वह अधिगमज सम्यग्दर्शन कहलाता है।
जीवा जीवानवबन्धसंवर निर्जरामोक्षास्तत्वम्।।४।।
जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्व हैं। (किसी किसी आचार्य के मत से पण्य व पाव ये दो तत्व भी प्रथक् माने गये हैं; किन्तु यहाँ आस्रव में ही उन दोनों का समावेश कर दिया गया है, इन सातों तत्वों का विस्तार पूर्वक वर्णन आगे के अध्यायों में किया जायगा)।
नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यास:।।५।।
नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों के द्वारा सम्यग्दर्शनादिकों का तथा जीवादि तत्त्वों का विभाग (लोक व्यवहार) होता है।
प्रमाणनयैरधिगमः।।६।।
प्रमाण और नयों द्वारा जीवादि तत्वों का ज्ञान होता है। (प्रमाण वस्तु के सर्वांश को ग्रहण करता है तथा नय वस्तु के एकांश को ग्रहण करता है।।
निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानत: ७
(१) निर्देश (वस्तुस्वरूप) (२) स्वामित्व (मालिकपना) (३) साधन (कारण) (४) अधिकरण (आधार) (५) स्थिति (काल मर्यादा) (६)