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________________ पहिला औदारिक शरीर गर्भ और सम्मूर्छन से पैदा होने वाले जीवों के होता है। औपपादिकम् वैक्रियिकम् ।।४६ ।। उपपाद जन्म से होने वाले जीवों के वैक्रियिक शरीर होता है। लब्धिप्रत्ययं च ।।४७ ।। तपो विशेष ऋद्धि प्राप्त जीवों के भी वैक्रियिक शरीर होता है। तैजसमपि।।४८ ।। तेजस भी लब्धि प्रत्यय होता है। शुभविशुद्धमव्याघाति चाहारकं प्रमत्तसंयतस्यैव ॥ ४९ ।। आहारक शरीर शुभ, विशुद्ध और व्याघात रहित होता है तथा यह प्रमत्त संयत नामक छट्ठे गुणस्थानवर्ती मुनि के ही होता है । नारकसम्मूर्छिनोनपुंसकानि ।। ५० ।। नारकी और सम्मूर्छन जीव नपुंसक ही होते हैं। न देवाः ।। ५१ ।। देव नपुंसक नहीं होते हैं। शेषास्त्रिवेदाः।।५२।। बाकी के गर्भ से होने वाले जीवों के स्त्री, पुरुष ये तीनों ही वेद होते हैं। और नपुंसक औपपादिकचरमोत्तमदेहासंख्येयवर्षायुषोनऽपवर्त्यायुष।
SR No.009950
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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