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तृतीय खण्ड ।
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२ दूत दोष- जो साधु दूत कर्म करके भोजन उपजावे सो दूत दोष है जैसे कोई साधु एक ग्रामसे दूसरे ग्राम में व एक देशसे दूसरे देशमें जल, थल या आकाश द्वारा जाता हो उसको कोई गृहस्थ यह कहे कि मेरा यह सन्देशा अमुक गृहस्थको कह देना वह साधु ऐसा ही करें - सन्देशा कहकर उस गृहस्थको सन्तोषी करके उससे दान लेवे |
३ निमित्त दोप - जो साधु निमित्तज्ञान से दातारको शुभ या अशुभ बताकर भिक्षा ग्रहण करे सो निमित्त दोष है । निमित्तज्ञान आठ प्रकारका है । १ व्यंजन- शरीरके मस्से तिल आदि देखकर बताना, २ अंग-मस्तक गला हाथ पैर देखकर बताना, ३ स्वर- उस प्रश्न कर्ताका या दूसरेका शब्द सुनकर बताना, ४ छेद - खड्ग आदिका प्रहार, व वस्त्रादिका छेद देखकर बताना, ५ भूमि - जमी - नको देखकर बताना, ६ अंतरिक्ष - आकाश में सूर्य चन्द्र, नक्षत्रादिके उदय, अस्त आदिसे बताना, ७ लक्षण - उस पुरुषके व अन्यके शरीरके स्वस्तिक चक्र आदि लक्षण देखकर बताना, ८ स्वप्न - उसके व दूसरेके स्वर्मोके द्वारा बताना ।
४ आजीव दोष - अपनी जाति व कुल बताकर, शिल्पकर्मकी चतुराई जानकर, व तपका माहात्म्य बताकर जो आहार ग्रहण किया. जय सो आजीव दोष है ।
५ चनीयक दोप- जो पात्र दातारके अनुकूल अयोग्य बचन कहकर भोजन प्राप्त करे सो वनीयक दोष है । जैसे दातारने पूछा कि कृपण, कोढ़ी, मांसभक्षी साधु व ब्राह्मण, दीक्षासे ही आजी.विका करनेवाले, कुत्ते, काकको भोजन देनेसे पुण्य है वा नहीं ।