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श्रीका |
मुक्ति मिलता होते हैं। गल मर्केहिं के सर्वयोकि ज्ञात है।
प्रथम स्थिलमें चार
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-सिरप वास्ती में तो नाही तराणाममके स्थास्यासिको कहते सूत्र पूर्ण हुए ॥ ५५ ॥ उत्थानिका- आगे कहते है
-फिट
जिनका ज्ञान सत्यार्थ श्रद्धान
तथा श्राचार' एनका एकता था मोक्षमार्ग है।
निगम पुर्वक दिंडी में मवाद जस्सेह सेजमो
EKSKUNDE KAST AS WERE ES थिति हवाद
नलाइ
आगमपूर्वा भवति यस्येह संयमस्तस्य
# मास्तीति णिति सूत्रमयती भवति कथं श्रमण ॥ Fय सहित समिन्यिर्थ इलाका जसरी जैस - नाव आजमपुबी) आगमज्ञान पूर्वक (दही) सम्यदर्शन ( (द) ही हम उस सनातन) 'संयम नहीं ऐसा मंत्र तहसी
वह (क) किर (समय) श्रमणासारहवदि) होता है ? शार्थ हितअपनी शु राह करने योग्य है। ऐसी रुचि सहित सम्यग्दर्शन शनिमहाविह परमीगमके बलसे निर्मल एक ज्ञान स्वरूप आत्माको मानते हुए मान सम्यग्दृष्टि है और न सम्यग्ज्ञान इन दोनों भाव होते हुए पंचेद्रियोंके विषयोंकी इच्छा तथा छः प्रकार जीवोके धसे अलग महने पर भी कोई जीव से "
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नियमी
नहीं होता है। इससे "यह सिद्ध किया गया कि परमागमनं तत्त्वधिश्रवान और संयमपनय ताहिक सक
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तंत्र