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२०४] श्रीप्रवचनसारटोका। गुण है । गुणोंमें जो परिणाम या अवस्थाएं होती हैं वे ही पर्याय हैं। जैसे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, कृष्णवर्ण, पीतवर्ण आदि। . ___ आगमके द्वारा हमको छः द्रव्योंके गुणपर्याय एथक् २ विदित होजाते हैं तथा हम अच्छी तरह जान लेते हैं कि छः द्रव्योंमें एक दूसरेसे बिलकुल भिन्नता है तथा हम यह भी जान लेते हैं कि आत्मामें अनादिकालीन कर्म बंधका प्रवाह चला आया है इसलिये यह संसारी आत्मा अशुद्धताको भोगता हुआ रागी द्वेषी मोही होकर पाप व पुण्यको बांधता है तथा उसके फलसे सुख दुःखको भोगता है।
व्यवहार व निश्चयनयसे छः द्रव्योंका ज्ञान आगमसे होजाता है। पदार्थोंमें नित्यपना है, अनित्यपना है, अस्तिपना है, नास्तिपना है, एकपना है, अनेकपना है, आदि अनेक स्वभावपना भी आगमके ज्ञानसे मालूम होजाता है । पदार्थोके जाननेका प्रयोजन यही है जो हम अपने आत्माको सर्व अन्य आत्माओंसे व पुद्गलादि द्रव्योंसे, व रागादिक नैमित्तिक भावोंसे जुदा एक शुद्ध स्फटिकमय अपने स्वाभाविक ज्ञानदर्शनादि गुणोंका पुंज जानकर उसके स्वरूपका भेद मालूम करके भेदज्ञानी होजावें जिससे हमको वह स्वसंवेदन ज्ञान व स्वानुभव हो जावे जिसके प्रतापसे यह आत्मा कर्मबंधको काटकर केवलज्ञानी हो जाता है । तव जिन पदार्थोंको कुछ गुण पर्यायों सहित क्रम क्रमसे परोक्ष ज्ञानसे जानता था उन सर्व पदार्थोंको सर्व गुण पर्यायों सहित विना क्रमके प्रत्यक्ष ज्ञानसे जान लेता है। वास्तवमें केवलज्ञान प्राप्तिका कारण मति, अवधि व मनःपर्यय ज्ञान नहीं हैं किन्तु एक श्रुतज्ञान है । इसीलिये जो मोक्षार्थी हैं उनको अच्छी तरह आगमकी सेवा करके तत्वज्ञानी होना चाहिये ।