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________________ ne maravaadimam १९४६]] श्रीप्रवचनसारटोति। उसके कर्मोनरक्षय किस तरह होसत्तमा अर्थात काफिी नहीं होसक्ता है। इसी कारण से मोक्षार्थी पुरुषको परमागमका होसमामाल ही करना योग्याहै प्लेसा तात्पर्य है। मन मा कायम गिम्भावार्थ: उस-माधामें आना और भी दिनाकर दिया कि शास्त्रज्ञान जिसको लहीं ऐसा बीचमापने आचको भातकर्स, द्रव्यम तथा भोकर्मसेमिनाजहीं जानता हुआ तथा उसकामांव- भावका अनुभव ान पता हुआ किसी भी तरह कोक्रामक्षा नहीं कर सकता है, इसलिये साधुको लिचक और मनवहारमोनों नयोंसेफ पदार्थोंका यथार्थ ज्ञानर होना चाहिये नावाजयोमानीवानिक तत्वोंको बतानेवाले प्रभावीनतत्वार्शीताच्याउसकी वृलिये सर्वार्थसिद्धि, राजवातिका हलोक्तवार्षिक दिनाचे शोमटसशिदि हैं। कमसेकसाइनी अंत्योंका तो अच्छा ज्ञान प्राप्त कर मानिसझे यह जानने में आना कि फोकावत जीवननिसाभाकिसतरह होताई है कर्मबंधने लारमामासंसारमें मौसीजन सिलवस्थाएं मनोगतीगषड़ती हैं।तथा कौनिाशक क्या उपाय है तथा शिकम्पिनिमामा मोक्षम है । जबान्व्यवहालातयसेनानाले जवनिश्चयाचयाशी मुलालासेट आत्माको सर्व अतीतमाओं से भिन्नादिवालानेवाले ग्रन परमाती प्रकाशनासमयसारी जिसमाधिशतकात इष्टोपिदेश आदि पहाजिमो बुद्धिमें भिन्न-आमाकी अनुभूतिहोले करोजा इसमातरह जब शाम स्त्रोकारिहस्यपि समझ जावेगा तब इसीके भेदज्ञात ही जीयगाकर भेद्रा ज्ञान द्वारा अपने शुद्ध आत्मापदार्थकोसीले जुन अनुभव करता हुआ चाम्यावरूपोहचरित्रकोपकारमानकी रिमासीकमका क्षयं कर पाती हैं इसील्लियोसाधुको शास्त्रकगिरहस्यक्रेमलिनेकी
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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