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तृतीय खण्ड। आहार ग्रहण करे, शरीरको स्वस्थ रखता हुआवारवार र समान आरूढ़ होता रहे । इसी विधिसे साधु संयमका ती पालन कर सका है। जो ऐसा हट करें कि मैं तो ध्यानमें ही कारगान शरीरकी थकन मेहंगा, न उसे थाहार दृग्ला, न शरीरने माग नेको शौच करूँगा तो फल यह होगा कि शन्ति न होनेर कुम, काल पीछे मन घबड़ा जायगा और पीड़ा चिन्तयन निशान हो जावेगा। तथा मरण करके कदाचित देव नायु पूर्व प्रकारे तो देवगतिमें जाकर बहुत काल मंयमके लाभ विना गमाया। यदि वह अपवाद या व्यवहार मार्गमें आकर गरीन्गी बन्दा करता रहता तो अधिक समय तक संयम पालकर की गि करता इससे ऐसे उत्सर्ग मार्गका एकांत पकडनेशलेने की कर्म बंधके भयसे अधिक कर्म बंधको प्राप्त किया । इससे लाभ बन हानि ही उठाई। इसलिये ऐसे साधुको अपवादती सागतम उत्सर्ग मार्ग सेवन करना चाहिये । दुमरा एकांती मा मात्र
अपवाद मार्गका ही सेवन करे । शास्त्र पढे विहार को शरीरको .भोजनादिसे रक्षित करे, परन्तु शुद्धोपयोगरूप उत्मन मार्मपर जानेकी भावना न करे । निश्चय नय द्वाग शुद्ध नवभवे, प्रतिक्रमण व सामायिक पाटादि पढ़े मो भी भार मधुन न पाकर अपना सच्चा हित नहीं कर सकेमा अन्य हार मार्गका एकांती साधु आर्गर गोपनिमा . स्था करे-भोजन आदि करूंगा नो अन्य रोग ? करके शरीरको स्वास्थ्ययुक्त व निराला न गया और . योगको शुद्धमाके सन्मुलन करे नो यह भी पानी नपा