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श्रीनकुंदकुंदस्वामी विचितश्रीप्रवचनखारटीका।
तृतीय खण्ड
____ अर्थात् छारिन हदीपिका
मङ्गलाचरण। वन्दो पांचों परम पद, निज आतम-रस लीन । रत्नत्रय स्वामी महा, राग दोष मद होन ॥१॥ वृषभ आदि महावीर लो, चौकोसों जिनराय । भरतक्षेत्र या युग विष, धर्म तीर्थ प्रगटाय ॥२॥ कर निर्मल निज आत्मको, हो परमातम सार।. . अन्त विना पोवत रहें, ज्ञान-सुखामृत धार ॥ ३॥ राम हनू सुग्रीव वर, बाहुबलि इन्द्रजात । गौतम . जम्बू आदि बहु, हुए सिद्ध मलवीत ॥ ४ ॥ में से पा स्वाधीनता, अर पवित्रता सार । हुए निरजन ज्ञान धन, बंदूं वारम्वार ॥ ५॥
* प्रारम्भ ता० १५-१-२४ मिती पौष सुदी ६ वीर सं. २४५० विक्रम सं० १९८० मंगलवार, दुधनी (शोलापुर)।