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श्रीप्रवचनसार भाषाटीका। [५९ पांच हैं फिर चारित्रकी सुचनाकी मुख्यतासे "संपज्जइ णिव्वाणं " इत्यादि गाथाएं तीन हैं, फिर शुभ, अशुभ शुद्ध उपयोगकी सूचनाकी मुख्यतासे "जीवो परिणमदि" इत्यादि गाथाएं दो हैं फिर उनके. फल कथनकी मुख्यतासे " धम्मेण परिणदप्पा " इत्यादि सूत्र दो हैं। फिर शुद्धोपयोगको ध्यानेवाले पुरुषके उत्साह बढ़ाने के लिये तथा शुद्धोपयोगका फल दिखाने के लिये पहली गाथा है । फिर, शुद्धोपयोगी पुरुषका लक्षण कहते हुए दूसरी गाथा है इस तरह . " अइसइमादसमुत्थं " को आदि लेकर दो गाथाएं है। इस तरह पीठिका नामके पहले अंतराधिकारमें पांच स्थलके द्वारा चौदह गाथाओंसे समुदाय पातनिका कही है, जिसका व्याख्यान हो चुका।
इस तरह १४ गाथाओं के द्वारा पांच स्थलोंसे पीठिका नामका प्रथम अन्तराधिकार समाप्त हुआ।
मागे सामान्यसे सर्वज्ञकी सिद्धि व ज्ञानका विचार तथा संक्षेपसे शुद्धोपयोगका फल कहते हुए गाथाएं सात हैं। इनमें चार स्थल हैं । पहले स्थलमें सर्वज्ञका स्वरूप कहते हुए पहली गाथा है, स्वयंभूका स्वरूप कहते हुए दूमरी इस तरह "उवओग विसुद्धोग को आदि लेकर दो गाथाएं हैं। फिर उस ही सर्वज्ञ भगवानके भीतर उत्पाद व्यय ध्रौव्यपन स्थापित करनेके लिये प्रथम गाथा है। फिर भी इस ही बातको दृढ़ करने के लिये दूसरी गाथा है। इस तरह "भंग विहीणो” को आदि लेकर दो गाथाएं हैं। आगे सर्वज्ञके शृद्धान करनेसे अनन्त सुख होता है । इसके दिखा. नेके लिये “ त सवत्थ वरिटुं" इत्यादि सूत्र एक. है। आगे