________________
३५६ ]
श्रीप्रवचनसार भाषाटीका ।
सर्व वृक्षोंकी सत्ता जानी जाती है, तथापि प्रत्येक वृक्ष अपनी भिन्न २ सत्ता रखता है । इसी तरह द्रव्योंमें जो सामान्य गुण व्यापक हैं जैसे गस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व, द्रव्यत्त्व, प्रदेशत्व, अगुरुलघुत्व उन सबकी अपेक्षा द्रव्य एकरूप है तथापि अनेक द्रव्य होनेसे सब द्रव्य अपने भिन्न र अस्तित्वको व वस्तुत्व आदिको भी रखते हैं । इस भेदको जानना चाहिये, जैसे महासत्ता एक है तथा अवान्तर सत्ता अनेक है । महावस्तु एक हैं । विशेष वस्तु अनेक है। इसके सिवाय विशेष गुणोंकी अपेक्षा छ:द्रव्योंके भेदको भिन्न २ जानना चाहिये । सजातीय अनेक द्रव्यों में हरएककी aat fee २ निश्चय करना चाहिये जैसे प्रत्येक जीव स्वभावकी अपेक्षा परस्पर समान हैं परन्तु भिन्न २ सत्ताको सदा ही रखते रहते हैं, चाहे संसार अवस्थामें हों या मुक्तिकी अवस्था में हों । पुद्गलके परमाणु यद्यपि स्कंध होजाते हैं तथापि प्रत्येक परमाणु अपनी अपनी नि २ सत्ता रखता है जो परस्पर एक क्षेत्र में रहते हुए द्रव्यों के सामान्य विशेष स्वभावोंको निश्चय करके अपने आत्माको अपनी बुन्देसे भिन्न पहचान लेता है वही सम्यग्दृष्टी व श्रद्धावान है। वही क्षीर जलकी तरह पुद्गलसे मिश्रित अपने जीवको अलग कर लेता है। इसी श्रद्धावान के सच्चा भेद ज्ञान होता है, और यही जीव साधुपदमें तिष्ठकर अपने आत्माको भिन्न ध्याता हुमा शुद्धोपयोग या साम्यभाव पर आरूढ़ होकर कर्मबंधका क्षय कर सक्ता है । यही धर्मसाधक है क्योंकि निश्चयसे अभेदरत्नत्रय स्वरूप अपना आत्मा ही मोक्ष मार्ग है । व्यवहार धर्म निश्चय धर्मका मात्र