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श्रीपवचनसार भापाटीका। [३३१ पयोगकी भावना व उसका ध्यान करके सर्व रागद्वेष सम्बन्धी कर्म प्रकतियोंको क्षय कर देना चाहिये । इन रागद्वेष मोहके क्षय करनेका उपाय आत्मासा ज्ञान और वीम्यं है । इसलिये मनसहित विचारयान जीवका कर्तव्य है कि यह गिनवाण का अभ्यास करके मात्मा और अनात्माके भेषवो समझले । आत्माके द्रव्यगुण पर्याय आत्मा और अनात्माके द्रव्य गुण पर्याय अनात्मामें जाने। यद्यपि अपना मात्मा फर्म पुनरूप मनात्मा के साथ दूध पानीकी तरह मिला हुआ है तथापि इस जेरो दूध पानीको अलग २ करनेकी शक्ति रखता है वैसे तत्वज्ञानीको इन शात्मा और अनात्माके कक्षणों को अलग अकग जानकर इनको अलग अलग करनेकी शक्ति अपनेमें पैदा करनी चाहिये । इस ज्ञानको भेद विज्ञान करते हैं। इस भेद विज्ञानके बलसे सपना मात्मवीर्य लगाकर गावको मोदके पंच जालासे हटाकर शुद्ध मात्माके स्वरूपके मननमें लगा देना चाहिंगे। ज्यों २ मामाकी तरफ झुकेगा मोहनीय कम शिथिल पड़ेगा। वारवार अभ्यास करते रहने से एक समय यकायक सम्यग्दर्शनके बाधक फोका उपशम हो जायगा। फिर भी इसी शुद्ध आत्मा मननके अभ्यासको जारी रखनेसे सम्वतके वाधक कोका जडमूलसे क्षय होनायगा वर अविनाशी क्षायिक सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो जायगा। फिर भी उसी शुद्ध आत्माका मनन ध्यान या अनुभव करते रहना चाहिये । इनके प्रतापसे गुणस्थानों के क्रमसे चढता हुषा एक दिन क्षपक श्रेणीके मार्गपर मारूढ होकर सर्व मोहनीय कर्मका क्षय कर वीतरागी निग्रंथ साधु हो जायगा । तात्पर्य यह है इन राग द्वष मोहोंके