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श्रीप्रवचनसार भाषाटीका 1
हरएक द्रव्य इन तीन प्रकारसे तीन स्वभाव रूप है । इन सब छः प्रकारके ज्ञेय पदार्थोंको द्रव्य इसी कारणसे कहते हैं कि ये सब द्रव्य परिणमनशील हैं जो प्रवण करे- परिणमन करे उसे द्रव्य कहते हैं, ऐसा द्रव्यपना लोकके सन पदार्थोंमें विद्यमान है । आत्मा स्वयं ज्ञान स्वभाव रूप है वह अपनी ज्ञान शक्ति से ही सर्व ज्ञेयोंको जानता है। उस ज्ञानके परिणमनके लिये अन्य किसी ज्ञानकी जरूरत नहीं है । जैसे दीपक स्वभावले . स्वपर प्रकाशक है ऐसे ही आत्माका ज्ञान स्वपर प्रकाशक है । dost at प्रकार यदि नहीं माने तो द्रव्य अपनी सत्ताको नहीं रख सक्ता है। जब द्रव्य अपने नामसे ही द्रवणशील है त उसमें समय २ अवस्थाएं होनी ही चाहिये, यदि द्रव्य सतरूप नित्य न हो तो उसका परिणमन मदा चल नहीं रुक्ता । इस अपेक्षाले द्रव्य अपने पर्यायोंके कारण तीन प्रकारका होजाता है । भूतकालकी पर्यायें, भविष्यकालकी पर्यायें तथा वर्तमानकान की पर्याय | जब पर्याय समय २ अन्य अन्य होती है तब स्वतः सिद्ध है कि हरएक समयमें प्राचीन पर्यायका व्यय होता है और नवीन पर्यायका उत्पाद होता है जत्र कि पर्यायोंका आधारभूत द्रव्य धौव्यरूप है । इस तरह द्रव्य उत्पाद, व्यय, धौव्यरूप है । द्रव्य गुण पर्यायोंका समुदाय है-समुदायकी अपेक्षा एक द्रव्य, वह द्रव्य अनंतगुणों का समुदाय है इससे गुणरूप, और हरएक गुणमें समय २ पर्याय हुआ करती है इससे पर्यायरूप इस तरह द्रव्य, द्रव्य गुणपर्यायरूप है । सम्पूर्ण छः द्रव्य इस तीन प्रकारके स्वभावको रखनेवाले हैं । इन सर्व द्रव्योंको आत्माका ज्ञान नान
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