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श्रीप्रवचनसार भाषाटीका !
जानने योग्य ज्ञेय द्रव्य तीन प्रकार कहा गया है। वह ज्ञेयभूत द्रव्य किसी अपेक्षा परिणपनशील होता हुआ आत्मा और अनात्मा है !
अन्वय सहिन विशेषार्थ - क्योंकि आत्मा ही अपने उपादान रूपसे ज्ञानरूप परिणमन करता है तैसे ही पदार्थों को जानता है ऐस पूर्व सूत्र में कहा गया है (तम्हा) इसलिये (जीवः) आत्मा ही ( णाणं ) ज्ञान है । ( पेयं दव्वं ) उस ज्ञानस्वरूप आत्माका ज्ञेय द्रव्य ( विहा) तीन प्रकार अर्थात् भूत, भविष्य, वर्तमान पर्याय में परिणमन रूपसे या द्रव्य गुण पर्याय रूपसे या उत्पाद व्यय श्रौम्यरूपसे ऐसे तीन प्रकार (सनश्खादें ) कहा गया है । (पुणः ) तथा ( परिणामसंहः) किसी अपेक्षा परिणमनशीळ ( आदा च परं ) आत्मा और पर द्रव्य ( बव्यंति ) द्रव्य हैं तथा क्योंकि ज्ञान दीपक के समान अपने को भी जानता है और परको भी जानता है इसलिये आत्मा भी ज्ञेय है ।
यहां पर नैयायिक मत अनुसार चलनेवाला कोई कहता है कि ज्ञान दूसरे ज्ञानसे जाना जाता है क्योंकि वह प्रमेय है जैसे घट आदि अर्थात् ज्ञान स्वयं आपको नहीं जानता है । इसका समाधान करते हैं कि ऐसा कहना दीपकके साथ व्यभिचार रूप है । क्योंकि प्रदीप सपने आप प्रमेव या जानने योग्य ज्ञेय है उसके प्रकाशके लिये अन्य दीपककी आवश्यक्ता नहीं है । वैसे ही ज्ञान भी अपने आप ही अपने आत्माको प्रकाश करता है। उसके लिये अन्य ज्ञानके होनेकी जरूरत नहीं है । ज्ञान स्वयं स्वपर प्रकाशक है । यदि ज्ञान दूसरे ज्ञानसे प्रकाशता है तब वह