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श्रीप्रवचनसार भाषाटीका ।
द्रव्य है उष्णता उसका गुण है। इन दोनोंमें कथंचित् भेद व कथंचित अभेद है । निकी संज्ञा जुदी है उष्णताकी जुड़ी है यह संज्ञा व नामभेद हैं। अग्निकी संख्या अनेक प्रकार होसक्ती है जैसे तिनकेकी अग्नि, लकडोकी अग्नि, कोयले की अग्नि परंतु उष्णताकी संख्या एक है, अग्निका लक्षण दाहक बाचक प्रकाशक कहते हैं जबकि उष्णताका लक्षण मात्र दाह उत्पन्न करना है, अग्निका प्रयोजन अनेक प्रकारका होसक्ता है जब कि उष्णताका प्रयोजन गर्मी पहुंचाना व शीत निवारण मन्त्र है इस तह भेद है तो भी अग्नि और उष्णताका एक क्षेत्रावगाह सम्बध है। जहां अग्नि है वहां उष्णता जरूर है इसी तरह आत्मा और ज्ञानका कथंचित भेद व कथंचित अभेदरूप सम्बन्ध है । आत्मा और ज्ञानकी संज्ञा भिन्न २ है । आत्मा की संख्या अनेक है ज्ञान गुण एक है | आत्माका लक्षण उपयोगवान है। ज्ञान वह है जो मात्र जाने, आत्माका प्रयोजन स्वाधीन होकर विजानन्द भोग करना है जब कि ज्ञानका प्रयोजन अहित त्याग व हितका
है इस तरह ज्ञान और आत्मामें भेद है तथापि प्रदेशों की अपेक्षा अभेद है ।
यह आत्मा ज्ञानी अपने ज्ञान स्वभाव को अपेक्षांसे है । ऐसा नहीं कि ज्ञान कोई भिन्न वस्तु है उसके संयोग से आत्माको ज्ञानी कहते हैं । जैसे लकड़ोके संयोगसे लकड़ीवाला, व दतीलेके सयोगसे घास काटनेवाला ऐसा संयोग सम्बन्ध जो आत्मा और ज्ञानका मानते हैं उसके मत में ज्ञानके संयोग बिना आत्मा जड़ पुद्गलवत होनायगा तब जैसे ज्ञानके संयोग से जड़ पुद्गलवत् कोई