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________________ भापके तीन संतान हुई जिनमें प्रथम श्रीयुत चंडीप्रसादजीका जन्म संवत् १९१४ में हुवा । द्वितीय संतान आपके एक कन्या हुई और तृतीय संतान चि० देवीप्रसादका जन्म संवत १९६२ में हुवा। सेठ मिरधारीलालमी बड़े मिशनसार तथा पर दुःख सुखमें सहयोग देनेवाले थे । धार्मिक नियमोंको भी आप यथासाध्य पालते थे। योतो माप श्री सम्मेदाचलकी यात्रा ३-१ वार कर माये ये पर संवत् १९७७ में अर्थात् स्वर्गारोहण (सं० १९७८) के ८-९ मास पूर्व ही आपको पुनः एकाएक तीर्थयात्रा करनेकी लालसा हुई । सो ठीक ही है, जिसकी गति अच्छी होनेको होती है उसके विचार धर्मकी ओर ऋजु हो जाते हैं। अतएव भाप कर्मकी निर्जरा हेतु सपरिवार प्रायः सारे तीर्थोके दर्शनकर माये और यथाशक्ति दान भी किया तथा श्री सम्मेदशिखरजीमें यात्रियों के लिये एक कमरा भी बनवा पाये। आपने कलकत्तेके रथोत्सवपर एकवार श्री मिनेन्द्र भगवानका रथ भी हांका था। मृत्यु समयमै भी आपने ५०००) का दान किया था। . आपके दोनों पुत्र (चित्रमें ) पिताके जीवन कालहीमें व्यापारनिपुणता प्राप्तकर चुके थे और अपने पिताको उनकी मृत्युके दो वर्ष पूर्व ही व्यापारसे मुक्तकर धर्मध्यानमें लगा दिया • था । " यन्नवे भानने. लग्नः संस्कारो नान्यथा भवेत्" की कहा कहावतके अनुसार ये दोनों भाई. धर्माचरणः करनेवाले, · सरलस्व. भावी, मिलनसार, परोपकाराः धन लगानेवाले और सदाचारी हैं।
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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