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८८] श्रीभवचनसार भाषाटीका । की मिट्टी खाने हैं परन्तु उसमे कम्की मुख मिटती नहीं है। इन छ: प्रकार के माहारों से केवी अरहंत भगवान के मात्र नोकर्मका बाहार है हमी ही अपेक्षा केवली अरइंतों के माहारकपना जानना चाहिये, कवलाहाकी अपेमासे , नहीं । सुक्ष्म इंद्रियों के अगोचर, रसबाले सुगधित अन्य मनुष्यों के लिये मसंभव, कवलाहारके विना भी कुछ कम एक कोह पूर्व तक शरीरकी स्थितिके कारण, सात धातुओंमे रहित परामौतारिक शरीर रूप नोकमके आहारके योग्य आहारक वर्गणनों गद्गल लाभान्ताय सर्मके पूर्ण क्षय होनानेसे वेवली महारानके घर योग शक्तिके आकर्षणसे प्रति समय समय भाते हैं। यही चलीके आहार है यह वात नवकेवललब्धिके व्याख्यान अने.. पर कही गई है इस लिये यह जाना जाता है कि वेव महतोके नोकम्मके आहा. रकी अपेक्षासे ही माहारपना है यदि आप कहो कि माहारपना अनाहारकपना नोकर्मके Bane, अपेक्षा कहना तथा कवलाहारकी अपेक्षा न कहना यह माहौ र पना है, यदि सिद्धांतमें है तो कैसे माल्बम पड़े तो इसका -माधान यह है कि श्री उमास्वामी महाराज तत्वार्थसुदूरे अ० में यह वाक्य है " एकं दौत्रीन्दानाहरकः" ३०॥
इस सुत्रका भावरूप अर्थ जाता है। एक शरीरको छोड़कर दूसरे भवमें नानेके कालमे प्रि गतिके भीतर स्थूल शरीरका अभाव होते हुए नर्व, यूझ शरार धारण करनेके लिये तीन शरीर और छ: पर्णप्ति योग्य पद्गल , पिंडकी ग्रहण होना नोकर्म माहार नाता है ! ऐसा नोकर्म