SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मित्र-भेद मैंने आज तेरा सब वन-पशुओं के राजा की तरह अभिषेक किया । इसलिए तू जाकर सबको पाल-पोस।' इसलिए मैं यहां आया हूं। सब पशुओं को मेरी छत्र-छाया में रहना चाहिए । तीनों लोक के पशुओं का मैं ककुद्रुम नाम का राजा हुआ हूं।" यह सुनकर सिंह, बाघ आदि वन-पशु 'स्वामी', 'प्रभो,' 'आज्ञा दीजिए', यह कहते हुए उसे चारों ओर से घेरकर बैठ गए। उसने सिंह को मंत्री, बाघ को सेजपाल, और चीते को राजा की पान-सुपारी का अधिकारी और भेड़िए को दरबान बनाया। उसके जितने सगे सियार थे, उनके साथ वह बातचीत भी नहीं करता था। गरदनिया देकर सब सियार बाहर निकाल दिये गए । इस तरह राज-काज चलाते हुए उसक सामने सिंह इत्यादि हिंस्रक पशु दूसरे पशुओं को लाते थे और वह भी राज-धर्म के अनुसार उन्हें सबमें बांट देता था। ___इस प्रकार कुछ समय बीतने पर एक बार ककुद्रुम ने दूर से भोंकते हुए सियारों को सुना । उनकी आवाज सुनकर उसके शरीर के रोएं खड़े हो गए, आँख में आनन्द के आँसू भर आये और वह ऊंचे स्वर से रोने लगा। इतने में सिंह वगैरह ने उसका ऊंचा स्वर सुनकर , और वह सियार है, यह जानकर शरम से थोड़ी देर नीचा मुंह करके पीछे कहा कि 'अरे! इसने हम सबको ठगा है। यह तो एक छोटा सियार है। इसे मारो।' ऐस' सुनते ही वह भागना ही चाहता था कि इतने में सिंह वगैरह ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये और वह मर गया। ___इसलिए मैं कहता हूं कि भीतरियों को जो बाहर निकाल देता है और अजनवियों को विश्वासी बनाता है, वह राजा ककुद्रुम की तरह मृत्यु पाता है।" यह सुनकर पिंगलक ने कहा , “यदि यह संजीवक मेरे प्रति बुरी नीयत रखता है तो इसकी खातिरी मुझे कैसे हो ? " दमनक ने कहा, "आज ही मेरे सामने उसने निश्चय किया है कि 'सबेरे मैं पिंगलक को मारूँगा।' यही इस बात की खातिरी है।" सबेरे सभा के समय लाल आँखों और फड़कते होंठों के साथ चारों ओर वह देखते हुए अनुचित जगह पर बैठकर
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy