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मित्र-भेद मिलना चाहिए। तू अकेली इस जगह राजा का खून चूसे, यह ठीक नहीं है।" यह सुनकर मंदविसर्पिणी ने कहा , “अरे खटमल! यह राजा जब सो जाता है तो मैं इसका खून चूसती हूं। पर तू तो अगियाने वाला और चपल है। अगर तू मेरे साथ खून पीना चाहता है तो ठहर और मनचाहा लहू चूस ।" खटमल बोला, “भगवति! मैं ऐसा ही करूंगा, जब तक तू राजा का लहू न चख लेगी, तब तक अगर मैं उसे चखू तो मुझे देवता और गुरु की कसम है।"
___ वे इस तरह बात कर रहे थे कि राजा अपनी खाट में आकर सो गया। बाद में उस खटमल ने जीभ के लालच से राजा के जागते रहने पर भी उसे काटा । अथवा ठीक ही कहा है कि
"उपदेश देने पर भी स्वभाव बदला नहीं जा सकता, अच्छी तरह गरम किया हुआ पानी भी फिर ठंडा हो जाता है। आग अगर ठंडी हो जाय और चन्द्रमा गरम हो जाय, फिर भी इस दुनिया में मनुष्यों का स्वभाव बदला नहीं जा सकता।"
इस पर वह राजा मानो सुई की नोक से बिंधने के समान अपनी खाट छोड़कर फौरन उठ खड़ा हुआ । 'अरे, इसका पता लगाओ कि इस चादर में खटमल है या जूं है, जिसने मुझे काटा है।' जो कंचुकी वहां थे, उन्होंने जल्दी से चादर लेकर उसकी बड़ी बारीकी से जांच-पड़ताल शुरू कर दी। उसी समय फुर्तीला होने से खटमल खाट के सेंध में घुस गया, पर मन्दविसर्पिणी कपड़े के जोड़ में दिखलाई दे गई और मार दी गई। इसीलिए मैं कहता हूँ कि अज्ञात शील वाले को आश्रय नहीं देना चाहिए ; खटमल के दोष से मन्दविसर्पिणी जूं मारी गई। ___ यह जानकर आप संजीवक को मार डालिए; नहीं तो वह आपको मार डालेगा। कहा भी है
"जो अपने भीतरियों को बाहर निकाल देता है और अजनवियों को विश्वासी बनाता है, वह राजा ककुद्रुम की तरह मृत्यु पाता है।"