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मित्र-भेद दुश्मनी रखता है । मुझे अपना विश्वासपात्र समझकर उसने मुझसे अकेले में कहा, "मैंने इस पिंगलक की मजबूती और कमजोरी देख ली है, इसलिए मैं उसे मारकर सब पशुओं का राजा बनकर तुझे मंत्री का पद दूंगा।" वजाघात समान भयंकर बात सुनकर पिंगलक के होश उड़ गए और बह कुछ बोला नहीं । दमनक भी उसकी सूरत देखकर सोचने लगा, "इसका संजीवक के ऊपर गहरा प्रेम है । इस मंत्री से राजा का अवश्य विनाश होगा।"
कहा भी है"राजा अगर एक ही मंत्री को राज्य में प्रमाणभूत मानता है तो वह शान के मारे मदमत्त हो जाता है, और उस मद के कारण वह सेवा-भाव छोड़ देता है। ऐसी विरक्ति से स्वतंत्र होने की इच्छा अपने पैर फैलाने लगती है, और स्वतंत्रता का नतीजा
यह होता है कि वह राजा की प्राणपण से बुराई करता है।" "तो यहां क्या करना चाहिए ?" पिंगलक ने भी धीरे-धीरे होश में आकर उससे कहा, " संजीवक तो मेरी जान के समान सेवक है। वह मेरे प्रति द्रोह-बुद्धि कैसे कर सकता है ? "दमनक ने कहा, "इस बारे में सेवक और असेवक का कोई एकांत नियम नहीं है। कहा भी है --
"ऐसा कोई आदमी नहीं है जो राजलक्ष्मी न चाहता हो । केवल
कमजोर ही हर जगह राजा की सेवा करते हैं।" पिंगलक ने कहा, "भद्र! फिर भी मेरा मन उसके संबंध में शक नहीं करता । अथवा ठीक ही कहा है कि
"अपनी देह अचेक दोषों से दूषित्त होते हुए भी किसे प्रिय नहीं लगती ? जो प्रिय है वह अप्रिय काम करते हुए भी प्रिय ही
रहता है।” दमनक ने कहा , “यही तो दोष है । कहा है कि "जिसके ऊपर राजा अपनी अधिक नजर रखते हैं वह पुरुष खानदानी
न होने पर भी धन पाने का हकदार होता है। किस विशेष गुण से स्वामी निर्गुण संजीवक को अपने पास रखते हैं ?