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पञ्चतन्त्र
मीठा हो जाय , तभी स्त्रियों में सतीत्व पैदा हो सकता है।" एक दिन त्रिस्तनी ने कुबड़े से कहा, "हे सुभग! यदि अंधा किनी तरह मार दिया जाय तो हम दोनों का समय मौज से कटे, इसलिए कहीं से जहर की खोज कर, जो इसे देकर मैं सुखी हो जाऊं।" उस कुबड़े को घूमते-घामते एक मरा सांप दिखलाई दिया। उसे देखकर खुशी-खुशी घर लाकर वह त्रिस्तनी से कहने लगा, “सुभगे! यह काला सांप मिला है। इसकी बोटी-बोटी करके सोंठ इत्यादि मसाले मिलाकर और पकाकर मछली का मांस कहकर उस अन्धे को दे दे। इससे वह फौरन मर जायगा। उसे मछली का मांस बड़ा प्रिय भी है।" यह कहकर कुबड़ा बाहर चला गया। घर के काम में व्यस्त उसने भी आग जलाकर काले सांप की बोटी-बोटी करके उसे मढे में मिलाया और अंधे से विनयपूर्वक कहा , “आर्यपुत्र! आपका मनचाही मछली का मांस, जिसे आप हमेशा मांगते रहते हैं, मैं लाई हूं। मछलियां पकने के लिए आग पर चढ़ी हैं। जब तक मैं घर का काम करती हूं, आप कड़छल से उसे चला दीजिए।" यह सुनकर वह भी खुशी-खुशी मुंह चाटता हुआ जल्दी से उठकर कड़छल से उसे चलाने लगा।
मछली समझकर सांप के मांस को चलाते हुए उसकी विषैली भाप से उसके आंख के मांड़े गल गए । इससे बहुत फायदा मानकर वह अंधा अपनी आंखों पर बराबर उसका बफारा देने लगा। __ नजर लौट आने पर उसे वहां केवल सांप के टुकड़े ही दीख पड़े। फिर उसने सोचा, 'अरे! यह क्या बात है ? उसनेतो मुझसे मछली का मांस कहा था, पर यह तो सांप की बोटियां हैं। इसलिए मैं त्रिस्तनी का चाल चलन दरयाफ्त करूं जिससे यह पता लमे कि मुझे मारने की तदबीर उस कुबड़े की है या किसी और की ।' यह सोचकर और अपना भाक छिपाकर वह पहले जैसा ही अंधे की तरह काम करने लगा। उसी समय कुबड़ा बेधड़क आकर आलिंगन और चुम्बन से त्रिस्तनी के साथ भोग करने लगा। जब अंधे ने यह देखा तो उसे कोई हथियार मारने के लिए नहीं मिला। क्रोध