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पञ्चतन्त्र
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भंग और खानदान की सफाई नहीं देखते।" यह कहकर सबको छोड़कर बन्दरों का वह सरदार जंगल में चला गया। उसके जाने के दूसरे ही दिन वह मेढ़ा रसोई में घुसा । रसोईदार को जब कुछ नहीं मिला तो उसने अधजली लकड़ी से उसे मारा जिससे उसके शरीर में आग लग गई और वह मिमियाता हुआ पास में ही घोड़ों के अस्तबल में घुस गया । जमीन पर बहुत घास-फँस पड़े रहने से और उस पर उसके लोटने से चारों ओर आग लग गई, जिससे कितने ही घोड़ों की आंखें फूट गईं और वे मर गए, और कितनों ने अपने बंधन छुड़ाकर अधजले शरीर से इधर-उधर हिनहिनाते हुए लोगों की भीड़ में गड़बड़ी डाल दी। इससे राजा ने दुखी होकर घोड़ों के वैद्यों को बुलाकर पूछा, “बताइए, इन घोड़ों की दाह शांत करने का क्या कोई तरीका है?" शास्त्रों को देखकर उन्होंने जवाब दिया , “इस बारे में भगवान शालिहोत्र ने कहा है--
"जैसे सूर्योदय से अंधेरा नष्ट हो जाता है उसी तरह बन्दरों की
चरबी से आग की दाह से घोड़ों में उत्पन्न दोष नष्ट हो जाते हैं।" दाह-दोष से मरने के पहले ही इनका इलाज करवाइए।"
यह सुनकर राजा ने सब बन्दरों को मरवाने की आज्ञा दे दी । बहुत कहने से क्या ? वे बन्दर लाठी, पत्थर तथा दूसरे हथियारों से मार डाले गए।
बन्दरों का वह सरदार पुत्र, पौत्र, भतीजों, भांजों इत्यादि का मारा जाना सुनकर बड़ा दुखी हुआ और खाना-पीना छोड़कर एक वन से दूसरे वन में घूमने लगा। उसने सोचा, "किस तरह मैं उस राजा की बुराई का बदला लूं । कहा है कि .
" दूसरों द्वारा किये गए अपने कुल का अपमान जो डर अथवा स्वार्थ
से सहन करता है उसे पुरुषाधम जानना चाहिए।" प्यास से व्याकुल वह बूढ़ा बन्दर घूमता हुआ कमलासे भरे एक तालाब पर पहुंचा। वहां जब उसने आंखें गड़ाकर देखा तो उसे पता लगा कि वन[चरों के पैरों के निशान उस तालाब में जाते तो हैं पर निकलते नहीं। इस पर उसने सोचा, “अवश्य ही यह दुष्ट जलचर का घर है, इसलिए कमल की नाल