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________________ अपरीक्षितकारक २७६ तौर से ककड़ियां खाकर सबेरे अपने घर लौट आते थे। एक दिन उस मतवाले गधे ने खेत के बीच सियार से कहा, "अरे भांजे ! देख कैसी साफ रात है, इसलिए मैं गाऊंगा। बता कौनसा राग गाऊं?" उसने कहा, "मामा! ऐसा अनर्थ करने से क्या फायदा? हम दोनों चोरी करते हैं। चोरों और जारों को छिपा रहना चाहिए । कहा भी है कि "खांसने वाले को चोरी छोड़ देनी चाहिए। ऊंघता आदमी अगर जीना चाहे तो उसे भी चोरी छोड़ देनी चाहिए। रोगी आदमी अगर जीना चाहे तो उसे जीभ का लालच छोड़ देना चाहिए। फिर तेरे गीत में मधुर स्वर नहीं है । शंख की आवाज की तरह वह दूर से सुन पड़ता है। इस खेत के रखवाले सोए हुए हैं,वे या तो उठकर हमें बांध देंगे या मार डालेंगे। इसलिए ये अमृत समान ककडियां खा और न करने लायक काम न कर।" यह सुनकर गधा बोला , "अरे! तू वन में रहने वाला गीत का रस नहीं जानता, इसलिए ऐसा कह रहा है। कहा है कि "शरद् ऋतु की चांदनी में और प्रियजनों के निकट होने पर गीत की झंकार धन्यजनों के कानों में ही घुसती है।" सियार बोला, "मामा! यह तो ठीक है, पर तू गीत नहीं जानता, केवल रेंकता है । फिर अपने को नुक्सान पहुंचाने वाले ऐसे गीत से क्या मतलब ?" गधा बोला, "अरे मूर्ख! तुझे धिक्कार है । क्या मैं गीत नहीं जानता ? उसके भेद सुन "सात स्वर, तीन ग्राम, इक्कीस मूर्छनाएं, उनचास ताल, तीन मात्राएं और तीन लय होती हैं। "इसके बाद यतियों के तीन स्थान, छः मुख, नौ रस, छत्तीस राग और चालीस भाव होते हैं। "गीत के ये ८५ से अधिक अंग गिने जाते हैं और प्राचीन काल में स्वयं भरत ने इन्हें कहा है। "देवों को भी इस लोक में गीत के सिवाय और कोई दूसरी चीज नहीं भाती। सूखे तात के स्वर से आनन्द फैलाकर रावण ने
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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