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अपरीक्षितकारक
२७५ श्मशान ले जाने के लिए बहुत से लोग जा रहे थे। उन चारों में से एक ने पुस्तक देखी, उसमें लिखा था, 'महाजन जिस रास्ते जाते हों वही मार्ग है।' "बस हमें महाजनों के रास्ते पर चलना चाहिए।" महाजनों के साथ जाते हुए उन्होंने श्मशान में कोई गधा देखा । दूसरे ने पोथी खोली तो उसमें लिखा था--
"उत्सव, दुःख, भुखमरी, दुश्मन की चढ़ाई, राजद्वार और श्मशान
में जो साथ देता है , वही असली मित्र है। इसलिए यह गधा हमारा असली दोस्त है।" इस पर कोई उससे गले मिलने लगा और कोई उसके पैर धोने लगा। इतने में चारों ओर देखते हुए उन पंडितों को कोई ऊंट दिखाई दिया। उन्होंने कहा, "यह क्या है ?" इस पर तीसरे ने पोथी खोलकर कहा---
"धर्म की चाल तेज होती है। इसलिए यह धर्म है।" चौथे ने कहा
"मित्र को धर्म से जोड़ देना चाहिए, इसलिए अपने इस मित्र को हमें धर्म से मिला देना चाहिए।" बाद में उन्होंने गधे को ऊंट के गले से बांध दिया। यह बात किसी ने धोबी तक पहुंचा दी और जब वह उनकी मरम्मत करने पहुंचा तो वे भागे। थोड़े रास्ते चलने के बाद उन्हें एक नदी मिली। उसके बीच एक पलास के पत्ते को तैरते देखकर एक पंडित ने कहा--
"यह आने वाला पत्ता हमें पार उतार देगा।"
यह कहकर जैसे ही वह पत्ते पर गिरकर नदी में बहने लगा तो उसे बहते हुए देखकर एक दूसरे ने उसके बाल पकड़कर कहा--
"सर्वनाश होने पर पंडित आधा छोड़ देते हैं और आधे से काम
चलाते हैं, क्योंकि सर्वनाश दुस्सह है ।" यह कहकर उसने उसका सिर काट डाला।
चलते-चलते वे किसी गाँव में पहुंचे। देहाती उन्हें न्योता देकर अपने घर ले गए। एक को खाने में घी-खांड से बनी फेनी मिली । यह सोचकर