________________
अपरीक्षितकारक
ठीक ही कहा है।
- २७३
"विद्या नहीं पर वुद्धि बड़ी गिनी जाती है; बेवकूफ आदमी सिंह . में जान डालने वालों की तरह मारे जाते है ।" चक्रधर ने कहा, “यह कैसे ?" सुवर्णसिद्धि कहने लगा
सिंह को जिलाने वाले ब्राह्मण की कथा
" किसी शहर में चार ब्राह्मण मित्रतापूर्वक रहते थे । उनमें से तीन शास्त्रज्ञ पर मूर्ख थे । एक शास्त्र न पढ़े हुए भी बुद्धिमान था। एक बार मित्रों ने आपस में सलाह की, "उस विद्या से क्या गुण जिससे विदेश जाकर और वहाँ के राजा को प्रसन्न करके धन न पैदा किया जा सके ? इसलिए हमें पूरब की ओर जाना चाहिए ।" कुछ रास्ता चलने के बाद उनमें से सबसे बड़े ने कहा, “हम चारों में से चौथा मूर्ख पर बुद्धिमान है । विद्या बना केवल बुद्धि से राजा से दान नहीं मिल सकता, इसलिए हम अपने पैदा धन से इसे कुछ न देंगे । उसे घर जाने दो ।" इस पर दूसरे ने कहा, "हे सुबुद्धि ! विद्या न होने से तू अपने घर लौट जा ।" इस पर तीसरे ने कहा, “हमारे लिए ऐसा करना ठीक नहीं । हम सब लड़कपन से आपस में खेले - कूदे हैं । इसलिए उसे साथ चलने दो, हमारे पैदा किये धन में वह बराबर का हिस्से - दार होगा । कहा है कि
"जो लक्ष्मी केवल बहू की तरह हो और जिसका पथिक मामूली वेश्या की तरह उपभोग न कर सके उससे क्या ? और भी
"यह मेरा है यह दूसरे का है, ऐसा छोटी तबीयत वाले मानते हैं । उदार चरित्र वालों के लिए तो सारी दुनिया कुटुम्ब की तरह है ।
इसलिए इसे भी साथ चलने दो ।"
इस तरह चलने पर रास्ते के जंगल में उन्होंने सिंह की हड्डियां पड़ी देखीं। इस पर एक बोला, “आज मैं अपनी विद्या की ताकत आजमाऊँगा ।